भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने नैनो यूरिया का विरोध करते हुए किसानों से अपील की है कि वे इसका बहिष्कार कर दें। जान लेते हैं कि नैनो यूरिया क्या है।
नैनो यूरिया को पारंपरिक यूरिया के स्थान पर विकसित किया गया है और यह पारंपरिक यूरिया की आवश्यकता को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

इसकी 500 मिली. की एक बोतल में 40,000 मिलीग्राम/लीटर नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग/बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्त्व प्रदान करेगा। नैनो यूरिया का उत्पादन ऊर्जा कुशल, पर्यावरण अनुकूल उत्पादन प्रक्रिया द्वारा किया जाता है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन कम होता है।

फसल में पोषक तत्वों की उपलब्धता 80% से अधिक बढ़ गई, जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता बढ़ गई। पत्तियों पर खाद के रूप में इसका प्रयोग करने से फसल उत्पादकता में 8% की वृद्धि होती है, साथ ही मृदा, वायु और जल में भी सुधार होता है तथा किसानों को अधिक लाभ होता है।

नैनो यूरिया नैनो तकनीक पर आधारित एक क्रांतिकारी कृषि इनपुट है जो पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है। पारंपरिक यूरिया प्रिल की तुलना में, इसमें लगभग 20-50 एनएम का वांछनीय कण आकार और अधिक सतह क्षेत्र (1 मिमी यूरिया प्रिल से 10,000 गुना अधिक) और कणों की संख्या (1 मिमी यूरिया प्रिल से 55,000 नाइट्रोजन कण) है। यह नैनो कण के रूप में यूरिया का एक प्रकार है। यह यूरिया के परंपरागत विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्त्व (तरल) है।

इसे स्वदेशी रूप से नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (कलोल, गुजरात) में आत्मनिर्भर भारत अभियान और आत्मनिर्भर कृषि के अनुरूप विकसित किया गया है।अभी भारत अपनी यूरिया की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर है।

तरल नैनो यूरिया को पौधों के पोषण के लिये प्रभावी और कुशल पाया गया है जो बेहतर पोषण गुणवत्ता के साथ उत्पादन बढ़ाता है। यह मिट्टी में यूरिया के अतिरिक्त उपयोग को कम करके संतुलित पोषण प्रक्रिया को बढ़ाने में सक्षम है तथा फसलों को सशक्त एवं स्वस्थ बना सकता है और उन्हें लॉजिंग प्रभाव से बचाता है। इसका भूमिगत जल की गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा जलवायु परिवर्तन एवं धारणीय विकास पर प्रभाव के साथ ग्लोबल वार्मिंग में बहुत महत्त्वपूर्ण कमी आती है।

500 मिलीलिटर की बोतल का मूल्य 225 रुपये है, जो दानेदार यूरिया के मूल्य से 10 प्रतिशत कम है। 40 किलोग्राम के बोरे के मुकाबले नैनो यूरिया का ट्रांस्पोर्टेशन बहुत आसान और सस्ता है।

भारत में नैनो भूरिया किसानों की सहकारी संस्था इफको अपने गुजरात स्थित कलोल प्लांट में तैयार होता है। 31 मई, 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे लांच किया था। क्या मोदी के हर अच्छे काम का विरोध करना आन्दोलनजीवियों की स्थायी नीति है?

अतीत में जब ब्रिटिश सैन्य अधिकारी प्रोबी कॉटले ने भीम गोड़ा (हरिद्वार) में बैराज बना कर गंगनहर की परिकल्पना की थी, तब भी किसानों को बरग‌लाया गया था। कहा गया अंग्रेज गंगा के पवित्र जल से बिजली निकाल कर अपनी कोठियों में रोशनी करेंगे और थोथा पानी नहर, रजबाहे, गूलों के जरिए हमारे खेतों में पहुंचाकर हमारी फसलों को चौपट कर देंगे। आज उसी नहरी पानी के लिए अन्नदाता आपस में लठ बजाते हैं। राष्ट्र एवं किसानों की बेहतरी के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, जो योजनाएं, परियोजनायें चल रही हैं, उनमें बाधा डालना और किसान को गुमराह करना प्रगति की रफ्तार को ठप करने जैसा है।

गोविन्द वर्मा