17वीं लोकसभा भंग हो चुकी है और 18वीं अतिशीघ्र आकार लेने जा रही है। अपराधों की दुनिया में दंड पेलने वाले कितने बाहुबली मूछों पर ताव देते-देते 'माननीय' का ठप्पा लगवाने में कामयाब रहे, इसका ब्यौरा भी देश के सामने देर-सबेर आ जाएगा।
शायद यह हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है कि अपराधियों का राजनीतिकरण होने के बाद वे संसद और विधानमंडलों तक पहुंच जाते हैं। आतंकियों, देश द्रोहियों और कानून को पैरों तले कुचलने की हरकतें करने वाले राजनीति के छत्रपों की पीठ पर सवार होकर लोकतंत्र के मंदिरों में प्रवेश कर जाते हैं।
4 जून 2024 को पता चला कि भिंडरांवाले का चेला और पंजाब के अजनाला थाने से बंदूक के बल पर अपने साथियों को हवालात से छुड़ा ले जाने वाला अमृतपाल असम के डिब्रुगढ़ जेल के भीतर बैठा-बैठा ही पंजाब के खडूर साहिब लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर अपराधी से 'माननीय' बन गया। देश के लोगों ने टी.वी. पर देखा था कि अमृतपाल ने पुलिस थाने के सामने बंदूकें लहराते हुए कैसे कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई थीं। यह है लोकतंत्र की करामात।
लोकतंत्र के लिए एक और शानदार खबर भी पंजाब की ही है। फरीदकोट लोकसभा सीट से इन्दिरा गांधी के एक हत्यारे बेअंत सिंह का बेटा सरबजीत सिंह खालसा चुनाव जीत कर माननीय बन गया। नरेन्द्र मोदी की कृपा से राज्यपाल बने सत्यपाल मलिक कहते हैं कि जाट 600 साल तक दुश्मनी नहीं भूलता। फांसी की सजा पाये बेअंत के बेटे ने एम.पी. बन कर अपना इन्तकाम पूरा किया। इसका श्रेय तो लोकतंत्र को मिलेगा ही।
जम्मू-कश्मीर में खून-खराबा और लक्षित हत्या में (टारगेट किलिंग) करने वाले आतंकियों का मार्ग दर्शन करने, सरंक्षण देने और उन्हें धन उपलब्ध कराने वाला शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद तिहाड़ जेल में बन्द रहते दो लाख से अधिक मतों से जीता। आतंकियों के शरणदाता इंजीनियर रशीद ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हरा कर लोकतंत्र का परचम ऊंचा किया।
सच में हमारा लोकतंत्र बहुत महान् है।
गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'