नई दिल्ली। भाजपा सांसद सुजीत कुमार ने शुक्रवार को सरकार से आग्रह किया कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों, एनसीईआरटी की किताबों, सरकारी दस्तावेज और आधिकारिक वेबसाइटों में ब्रिटिश वायसरायों और गवर्नर जनरलों के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘लॉर्ड’ उपाधि को हटा दिया जाए। उन्होंने इसे स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी जारी रहने वाली “औपनिवेशिक मानसिकता” बताया।

राज्यसभा के शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए सुजीत कुमार ने कहा कि कक्षा आठवीं और बारहवीं की एनसीईआरटी इतिहास की किताबों, विभिन्न सरकारी दस्तावेजों और वेबसाइटों का रैंडम निरीक्षण करने पर कई संदर्भ सामने आए। इन किताबों और दस्तावेजों में लार्ड कर्जन, लार्ड माउंटबेटन, लार्ड डलहौजी और लार्ड लिटन जैसे ब्रिटिश अधिकारियों का उल्लेख पाया गया।

सांसद ने यह भी बताया कि संस्कृति मंत्रालय, प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और बिहार के ‘लोक भवन’ जैसी सरकारी वेबसाइटों में भी ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासकों के लिए ‘लॉर्ड’ उपाधि का उल्लेख मौजूद है।

ओडिशा से राज्यसभा सदस्य सुजीत कुमार ने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान औपनिवेशिक शासकों ने उपाधियों के माध्यम से शक्ति का दुरुपयोग किया और नस्लीय श्रेष्ठता का संदेश फैलाया। उन्होंने सवाल उठाया कि भारत को उन अधिकारियों को ‘देवता समान’ सम्मान क्यों देना चाहिए, जिनके शासनकाल में भारतीयों पर अत्याचार हुए, जबकि देश के स्वतंत्रता सेनानियों को ऐसा सम्मान नहीं मिला।

सांसद ने कहा कि भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र में इस तरह की प्रथा सामाजिक समानता और संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ रखने का उदाहरण देते हुए बताया कि यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाकर नागरिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय गर्व की ओर बदलाव दर्शाता है।

सुजीत कुमार ने प्रधानमंत्री के लाल किले से स्वतंत्रता दिवस संबोधन का भी हवाला दिया, जिसमें पीएम मोदी ने नागरिकों से “गुलामी मानसिकता” से मुक्त होने का आह्वान किया था।