कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर राहुल गांधी द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों पर भारत निर्वाचन आयोग ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। आयोग ने कहा कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में गड़बड़ी को लेकर चुनाव याचिका दाखिल की गई है, तो बेहतर होगा कि संबंधित उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा की जाए। आयोग ने सवाल उठाया कि यदि कानूनी प्रक्रिया अपनाई गई है, तो फिर सार्वजनिक रूप से निराधार आरोप लगाने की क्या आवश्यकता है?
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने गुरुवार को कहा था कि कांग्रेस के पास इस बात के “100 प्रतिशत सबूत” हैं कि कर्नाटक के एक विधानसभा क्षेत्र में निर्वाचन आयोग ने कथित रूप से धांधली होने दी। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि आयोग इस मामले से बच नहीं पाएगा और कांग्रेस इस मुद्दे को छोड़ने वाली नहीं है।
ECI पर गंभीर आरोप
राहुल गांधी ने यहां तक कहा कि मौजूदा चुनाव आयोग “भारत के निर्वाचन आयोग” की तरह काम नहीं कर रहा है और उसने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया है।
विधान के अनुसार, किसी भी निर्वाचन परिणाम के खिलाफ 45 दिनों के भीतर संबंधित उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जा सकती है। आयोग ने इसी प्रक्रिया का हवाला देते हुए गांधी के आरोपों को असंगत बताया।
कर्नाटक सीट पर फर्जीवाड़े के ठोस प्रमाण का दावा
जब राहुल गांधी से बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान और राजद नेता तेजस्वी यादव की चुनाव बहिष्कार की टिप्पणी पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने दोहराया कि कर्नाटक की एक सीट पर चुनाव आयोग ने “धोखाधड़ी की अनुमति” दी थी और कांग्रेस के पास इसके “ठोस प्रमाण” मौजूद हैं।
SIR का विरोध क्यों कर रहा विपक्ष
वहीं, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सहित कई विपक्षी दल विशेष मतदाता पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह कदम विशेष रूप से वंचित और हाशिए पर खड़े समुदायों के मताधिकार को छीनने की मंशा से उठाया गया है। उनका आरोप है कि इस प्रक्रिया की आड़ में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं, जिससे आगामी विधानसभा चुनावों के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।