सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़े मामलों में इन्हें जमानत का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की सर्वोच्चता स्वीकारते हुए अदालत ने कहा कि कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यापक राष्ट्रीय हित को भी केंद्र में रखना आवश्यक है।

यह टिप्पणी शीर्ष अदालत ने 2010 में हुए ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ सीबीआई की उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें निचली अदालत द्वारा कुछ आरोपियों को दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी।

2010 की दर्दनाक रेल दुर्घटना की पृष्ठभूमि
मई 2010 में मुंबई जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस झाड़ग्राम के पास पटरी से उतरकर सामने से आ रही मालगाड़ी से टकरा गई थी। हादसा आधी रात के करीब हुआ और 148 यात्रियों की मौत हो गई। प्रारंभिक जांच में यह घटना पटरियों से छेड़छाड़ का परिणाम बताई गई थी, जिसे माओवादी बंद के संदर्भ में देखा गया।

'राष्ट्रीय सुरक्षा केंद्र में हो, तभी मिलेगा संतुलन'
पीठ ने कहा कि पत्रावली में ऐसा कोई ठोस कारण नहीं पाया गया है, जो पहले से दी गई जमानत को रद्द करने को उचित ठहरा सके। अदालत ने माना कि आरोपियों के अधिकार महत्वपूर्ण हैं, पर ऐसे मामलों में न्यायालय को व्यापक दृष्टिकोण अपनाना पड़ता है।

पीठ ने कहा, “अनुच्छेद 21 के संरक्षण का महत्व सर्वोपरि है, परंतु राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़े संवेदनशील मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को एकमात्र कसौटी नहीं माना जा सकता।”

अदालत ने निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई अब दैनिक आधार पर होगी और सामान्य परिस्थितियों में स्थगन देने से परहेज किया जाएगा, ताकि लंबे समय से लंबित इस मामले को समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जा सके।