नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) के पंजीकरण को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने आरोप लगाया था कि पार्टी धार्मिक आधार पर वोट मांगती है, जो संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना का उल्लंघन है।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि संविधान में अल्पसंख्यकों को जो अधिकार दिए गए हैं, उनके संरक्षण की बात यदि कोई राजनीतिक दल करता है तो वह संविधान विरोधी नहीं मानी जा सकती। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि AIMIM का घोषणापत्र आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा की बात करता है, जो भारत के संविधान के अनुरूप है।
कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ धार्मिक ग्रंथों या पारंपरिक शिक्षाओं का उल्लेख करना आपत्तिजनक नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा कि कुछ राजनीतिक दल जातीय भावनाओं को आधार बनाकर राजनीति करते हैं, और यह भी एक संवेदनशील मुद्दा है। यदि याचिकाकर्ता व्यापक सुधारों के मसले उठाना चाहते हैं तो वे नई याचिका दायर कर सकते हैं, बशर्ते उसमें किसी एक दल या व्यक्ति को निशाना न बनाया जाए।
वकील विष्णु जैन के तर्कों पर प्रतिक्रिया
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विष्णु जैन ने तर्क दिया कि AIMIM इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देती है, और अगर कोई दल हिंदू नाम से पंजीकरण कराए तो चुनाव आयोग उसे अनुमति नहीं देगा। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि धार्मिक या सांस्कृतिक शिक्षाओं को साझा करना कानून के दायरे में है और चुनाव आयोग के फैसले से असहमति हो तो उसके खिलाफ उचित मंच पर अपील की जा सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी ग्रंथ या साहित्य के अध्ययन पर कानून कोई रोक नहीं लगाता।
दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय का उल्लेख
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को उस आदेश का अनुच्छेद 10 पढ़ने की सलाह दी। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दल अगर संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना चाहता है, तो वह असंवैधानिक नहीं माना जा सकता।