नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दायर कर देशभर में संसदीय, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों से पूर्व मतदाता सूचियों की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की मांग की गई है। यह याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दाखिल की गई है। मंगलवार को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि पहले याचिका से जुड़ी प्रक्रियागत खामियों को दूर किया जाए, उसके बाद ही इसे सूचीबद्ध किया जाएगा। इस पर उपाध्याय ने आग्रह किया कि इस मामले को 10 जुलाई को सुनवाई के लिए शामिल किया जाए, जब इसी विषय से जुड़ी अन्य याचिकाएं भी अदालत में पेश होंगी।
“केवल भारतीय नागरिक ही बनाएं नीति”
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि भारत निर्वाचन आयोग को विशेष गहन जांच का निर्देश दिया जाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश की राजनीतिक दिशा और नीति निर्धारण केवल भारतीय नागरिकों द्वारा ही किया जाए — न कि अवैध घुसपैठियों द्वारा।
याचिका में दावा किया गया है कि स्वतंत्रता के बाद से देश के कई जिलों में अवैध घुसपैठ, जनसंख्या वृद्धि और धोखाधड़ी के जरिए धर्म परिवर्तन के चलते करीब 200 जिलों और 1,500 तहसीलों की जनसंख्या संरचना में बड़ा बदलाव आया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, चुनावों के जरिए एक देश अपनी दिशा तय करता है, और इसलिए यह राज्य, केंद्र और निर्वाचन आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि केवल वास्तविक नागरिकों को ही मतदान का अधिकार सुनिश्चित करें।
बिहार पर विशेष फोकस, विपक्षी दलों ने जताई आपत्ति
याचिका में कहा गया है कि खासकर बिहार में स्थिति चिंताजनक है, जहां प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अनुमानतः 8,000 से 10,000 फर्जी, दोहराव या अवैध मतदाता नाम दर्ज हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 2,000-3,000 वोटों की गड़बड़ी भी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती है।
इस मुद्दे को लेकर बिहार में सियासी घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार), झारखंड मुक्ति मोर्चा, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) सहित कई विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, राजद के मनोज झा, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, एनसीपी की सुप्रिया सुले, सपा के हरिंदर मलिक, शिवसेना के अरविंद सावंत और अन्य नेता शामिल हैं। इन याचिकाओं में बिहार में चल रही मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की गई है।