तेलंगाना दलबदल मामला: सुप्रीम कोर्ट का स्पीकर को तीन महीने में फैसला सुनाने का आदेश

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यदि निर्णय में देरी होती है तो यह स्थिति ‘ऑपरेशन सफल, मरीज मृत’ जैसी होगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर को ऐसे मामलों में शीघ्र निर्णय लेना आवश्यक है, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित न हो।

दल-बदल पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

कोर्ट ने राजनीतिक दलबदल को लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा करार दिया और कहा कि यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो पूरी प्रणाली पर असर पड़ेगा। अदालत ने संसद से यह भी अनुरोध किया कि वह पुनर्विचार करे कि क्या ऐसे मामलों में निर्णय लेने की शक्ति केवल स्पीकर के पास रहनी चाहिए या किसी स्वतंत्र प्राधिकरण की जरूरत है।

हाई कोर्ट का आदेश पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया जिसमें कहा गया था कि स्पीकर ‘उचित समय’ में फैसला लें। अदालत ने माना कि ऐसे आदेशों से केवल विलंब को बढ़ावा मिला है जबकि संविधान त्वरित निर्णय की अपेक्षा करता है।

सात महीने तक नहीं भेजा गया नोटिस

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई कि अयोग्यता याचिकाएं दायर होने के सात महीने बाद तक भी स्पीकर की ओर से कोई नोटिस तक जारी नहीं किया गया था। अदालत ने कहा कि इस तरह की देरी लोकतांत्रिक सिद्धांतों को ठेस पहुंचाती है और केवल कोर्ट में याचिका दाखिल होने के बाद प्रक्रिया शुरू करना न्यायिक प्रक्रिया का अनादर है।

विधायकों के नाम और विवाद की पृष्ठभूमि

बीआरएस की ओर से याचिकाएं उन 10 विधायकों के खिलाफ दायर की गई थीं, जिन्होंने पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया। इनमें पाडी कौशिक रेड्डी, दानम नागेंदर, वेंकट राव टेल्लम और कडियम श्रीहरि जैसे विधायक शामिल हैं।

सीएम की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी

कोर्ट ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की उस टिप्पणी पर भी असंतोष जताया जिसमें उन्होंने विधानसभा में कहा था कि राज्य में कोई उपचुनाव नहीं होगा। अदालत ने इसे गैर-जिम्मेदाराना बयान बताते हुए कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं को ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए।

अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अयोग्यता मामलों में अंतिम फैसला स्पीकर को लेना होता है, लेकिन यदि प्रक्रिया में देरी या पक्षपात हो तो उसकी न्यायिक समीक्षा संभव है।

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