एक तरफ राज्य के कुछ जंगलों में आग लगी है तो वहीं दूसरी ओर वनकर्मी अपनी मांगों के लिए प्रदेश व्यापी हड़ताल कर रहे हैं, यह सर्वथा अनुचित है। यह हड़ताल का समय नहीं हो सकता। वनकर्मियों की अपने कार्य-क्षेत्र में कुछ विशेष और सामान्य समस्याएं होती हैं, जिन्हें दूर किया जाना अत्यंत जरूरी है।

उनकी मांगें जायज हो सकती हैं, उन्हें सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसे समय में, जब जंगल जल रहे हों, तब हड़ताल न करके आग बुझाने की कोशिश करनी चाहिए। यह राज्य में पहली बार नहीं है, जब कर्मचारियों ने संकट को अवसर में बदला हो। पूर्व में धान खरीदी के समय की गई हड़ताल, कोरोना के समय डाक्टरों की हड़ताल, परीक्षा और शिक्षा सत्र के समय शिक्षकों की हड़ताल इसके उदाहरण हैं। यह राज्य के हित में कतई नहीं है।

वनों को बचाने के लिए राज्य सरकार को तत्काल कारगर कदम उठाने चाहिए। हड़तालियों को कर्तव्य-बोध कराने के साथ ही उनकी 12 सूत्री मांगों के अलावा भी कई प्रकार की सुविधाओं की घोषणा करनी चाहिए, जिसमें उन्हें गश्ती के लिए तेज तथा आधुनिक वाहन, ड्रोन, सुरक्षा उपकरण, आधुनिक संचार साधनों की व्यवस्था, आसूचना तंत्र, वाच टावर की स्थापना तथा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का नवीनीकरण शामिल किया जाना चाहिए। तापमान, हवा की गति, आर्द्रता आदि मापने के लिए विशेष उपकरणों को भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।