आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी पीएमजेएवाइ) का लाभ राज्य की गरीब जनता को मिलता रहा है। इसके तहत निश्‍शुल्‍क इलाज कराकर काफी लोगों ने नई जिंदगी पाई है। लेकिन यह खबर चौंकाती है कि इस कल्याणकारी योजना के तहत राज्य में सर्वाधिक फर्जी दावे के मामले सामने आए हैं। यहां के कुछ अस्पतालों पर फर्जी बिल के 8,586 मामलों के लिए दंडात्मक कार्रवाई की गई है।

आयुष्मान योजना की शुरुआत करोड़ों व्यक्तियों के जीवन को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से की गई थी। योजना के तहत प्रति वर्ष प्रत्येक परिवार को पांच लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा का प्रविधान किया गया, ताकि किसी भी गरीब को अर्थाभाव के कारण इलाज से वंचित न होना पड़े। साथ ही इलाज के आर्थिक बोझ से उसकी आगे की जिंदगी कर्ज के अभिशाप से ग्रस्त न हो। लेकिन नीति निर्माताओं की जनकल्याणकारी दृष्टि को कुछ अस्पतालों और निजी नर्सिंग होम संचालकों ने अपने लालच के पोषण का जरिया बना लिया। जीवनरक्षा के लिए धरती के भगवान की चौखट पर आए मरीजों में इन्हें सोने का अंडा देने वाली मुर्गी नजर आती है। अकारण मरीजों को भर्ती करने तथा अनावश्यक जांच और दवाइयां लिखने के माध्यम से इन्होंने सरकारी सहायता का दुरुपयोग किया।

केंद्र की इस योजना को राज्य में डा. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत समाहित करके लागू किया गया। योजना बनाने वालों को अंदेशा था कि इसमें प्रविधानित राशि का दुरुपयोग हो सकता है, इसलिए ऐसे साफ्टवेयर तथा मरीजों की कई स्थितियों में तस्वीर डालने का प्रविधान किया गया था, लेकिन इन्हें आपत्तिजनक तथा मरीज की निजता का उल्लंघन करने वाला बताकर विरोध किया गया। पिछले वर्ष आयुष्मान कार्ड बनाने के अभियान में एक ही दिन में राज्य में 6 लाख 26 हजार से अधिक आयुष्मान कार्ड का पंजीयन किया गया था।

योजना के माध्यम से न सिर्फ जनता का स्वास्थ्य, बल्कि अनावश्यक खर्च से भी सुरक्षा की गई है, इसलिए इसका हिसाब रखना हर हितग्राही का अधिकार है, जिसकी सुरक्षा सरकार को करनी है। आशा की जानी चाहिए कि राज्य सरकार इस मामले को गंभीरता से लेगी, ताकि इसका लाभ सिर्फ जरूरतमंदों को ही मिले, दुरुपयोग न हो।