दिल्ली विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत में सोमवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के दौरान आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार को घेरते हुए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सीजफायर संबंधी दावे का हवाला दिया। नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के दबाव में आकर संघर्षविराम की मंजूरी दी। उन्होंने कहा कि जब अमेरिका की ओर से पहले ट्वीट कर सीजफायर की घोषणा की गई, तो विश्वास करना मुश्किल हुआ, लेकिन कुछ समय बाद भारतीय सेना ने भी इसकी पुष्टि कर दी।
’22 अप्रैल को देश ने सहा था पीड़ा का सबसे बड़ा दिन’
आतिशी ने कहा कि 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में जो कुछ हुआ, उसे देश कभी नहीं भूल सकता। उन्होंने बताया कि उस दिन देश ने महिलाओं को बिलखते और अपने परिजनों की जान की भीख मांगते देखा, लेकिन आतंकवादियों ने निर्दयता की सभी सीमाएं लांघ दीं। उन्होंने कहा कि इस हमले के बाद देश में सत्ता और विपक्ष के बीच कोई मतभेद नहीं रहा, सबने एकजुट होकर जवाब की मांग की।
‘सेना ने दिखाया अदम्य साहस’
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि भारतीय सेना ने दिन-रात एक कर आतंकियों को करारा जवाब दिया। उन्होंने पाकिस्तान पर आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि जब भारतीय कार्रवाई में आतंकवादी मारे गए, तब पाकिस्तान के उच्च अधिकारी और नेता उनके परिवारों के साथ खड़े नजर आए, जो सीधे तौर पर प्रायोजित आतंकवाद को दर्शाता है।
‘देश में भी फैलाई जा रही थी नफरत’
आप विधायक संजीव झा ने कहा कि आतंकियों का मकसद सिर्फ हमला करना नहीं था, बल्कि भारत में धार्मिक आधार पर नफरत फैलाकर गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा करना भी था। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ देशवासी भी ऐसी साजिशों का साथ दे रहे थे और समाज को बांटने का प्रयास कर रहे थे।
‘युद्धविराम न होता तो पीओके लौट सकता था’
विधायक कुलदीप कुमार ने कहा कि उस समय पूरा देश एकजुट था और सेना का मनोबल चरम पर था। उन्होंने सवाल किया कि जब देश और सेना तैयार थे, तब युद्धविराम क्यों किया गया? उन्होंने दावा किया कि यदि उस समय संघर्षविराम नहीं होता, तो भारत की सेना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) को वापस ले सकती थी।
‘कश्मीर मामले में मध्यस्थता क्यों?’
उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने आजादी के बाद से ही यह स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर और पाकिस्तान के मसले पर किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि ट्रंप बार-बार यह क्यों कह रहे हैं कि उन्होंने युद्ध रुकवाया? और अगर यह गलत है, तो प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से इसका खंडन क्यों नहीं करते?