नई दिल्ली: चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई ने डिजिटल युग में लड़कियों की सुरक्षा को गंभीर चुनौती बताते हुए चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर हमले, डिजिटल माध्यम से पीछा करना, व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग और डीपफेक तस्वीरों जैसी समस्याओं के कारण लड़कियां असुरक्षित महसूस करती हैं।

सीजेआई यह बातें राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श बैठक में बोलते हुए रखी, जिसका विषय था “बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में सुरक्षित और सक्षम वातावरण की दिशा में कदम”। यह कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय समिति (JJSC) और यूनिसेफ इंडिया के सहयोग से आयोजित किया गया।

बीआर गवई ने कहा कि संविधान और कानूनी सुरक्षा के बावजूद देश की कई बालिकाओं को उनके मौलिक अधिकारों और जीवन के लिए जरूरी मूलभूत जरूरतों से वंचित रखा जाता है। इसके चलते वे यौन शोषण, उत्पीड़न, कुपोषण, लिंग चयन पर गर्भपात, बाल तस्करी और जबरन बाल विवाह जैसी हानिकारक प्रथाओं के अधिक जोखिम में रहती हैं।

सीजेआई ने आगे कहा कि बालिकाओं की सुरक्षा केवल उनके शारीरिक संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी आत्मा को स्वतंत्र करना भी शामिल है। उन्हें एक ऐसा समाज देना होगा जहां वे सम्मान के साथ जीवन जी सकें और उनकी आकांक्षाएं शिक्षा और समानता से पूरी हों। उन्होंने पितृसत्तात्मक रीति-रिवाजों को चुनौती देने और उसे बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो लड़कियों को उनके अधिकारों और स्थान से वंचित करते हैं।

सीजेआई ने रविंद्रनाथ टैगोर की कविता “Where the Mind is Without Fear” का जिक्र करते हुए कहा कि इस भावना को हासिल करना जरूरी है। उन्होंने कहा, “यह सपना अधूरा रहेगा जब तक हमारी किसी भी लड़की के जीवन में डर का साया बना रहेगा।”