मुंबई में 26/11 को हुए आतंकी हमलों के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को हाल ही में पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां उसके हस्तलिखित नमूने लिए गए। राणा के वकील पीयूष सचदेवा ने बताया कि यह कार्रवाई न्यायिक मजिस्ट्रेट की निगरानी में की गई और आरोपी ने अदालत के निर्देशों का पालन किया। इसके अलावा, एजेंसियों ने लोधी रोड स्थित मुख्यालय में उसकी आवाज के नमूने भी रिकॉर्ड किए। इन दोनों प्रक्रियाओं में सामान्य अल्फान्यूमेरिक शब्दों का उपयोग किया गया।

दो दिन पहले दिल्ली की एक अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को राणा की लिखावट और आवाज के सैंपल लेने की अनुमति दी थी। विशेष एनआईए न्यायाधीश चंदर जीत सिंह ने यह अनुमति 30 अप्रैल को दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद दी थी। इससे पहले 28 अप्रैल को अदालत ने उसकी हिरासत 12 दिन के लिए बढ़ाई थी।

भारत लाया गया मुख्य साजिशकर्ता

तहव्वुर राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया है और वर्तमान में वह एनआईए की हिरासत में है। मुंबई हमलों की साजिश में उसकी भूमिका को लेकर भारत 2009 से ही उसके प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था। जबकि उसका साथी डेविड कोलमैन हेडली पहले ही अमेरिका में गिरफ्तार हो चुका है, राणा को अमेरिका की अदालतों और वहां के राष्ट्रपति स्तर से मंजूरी मिलने के बाद भारत लाने में सफलता मिली।

डेविड हेडली से जुड़ाव बना संदेह का कारण

जांच एजेंसियों का दावा है कि राणा ने अपनी कंसल्टेंसी फर्म के जरिए डेविड हेडली को भारत में काम दिलाया था, जिसके चलते हेडली ने मुंबई में ताज होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जैसी प्रमुख जगहों की रेकी की। इस रेकी की मदद से 2008 में लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने मुंबई में coordinated हमले किए थे, जिनमें 166 लोगों की जान गई थी, जिनमें छह अमेरिकी नागरिक भी शामिल थे।

प्रत्यर्पण की प्रक्रिया

एनआईए और अन्य एजेंसियों ने अमेरिका के न्यायिक तंत्र के साथ मिलकर राणा के प्रत्यर्पण की पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया। कई बार कानूनी अड़चनों और याचिकाओं के बावजूद अमेरिका की सर्वोच्च अदालत और ट्रंप प्रशासन ने भारत की दलीलों को स्वीकार करते हुए प्रत्यर्पण की मंजूरी दी। इस प्रयास में भारतीय गृह और विदेश मंत्रालयों का भी अहम योगदान रहा।

यह घटना भारत के लिए आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर एक निर्णायक कदम माना जा रहा है, जो यह संदेश देती है कि आतंक फैलाने वाले चाहे जहां भी हों, उन्हें न्याय से बचाया नहीं जा सकता।