दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें फल-आधारित, गैर-कार्बोनेटेड या रेडी-टू-ड्रिंक पेय पदार्थों पर ‘ओआरएस’ (Oral Rehydration Salt) लेबल लगाने पर रोक लगाई गई थी। अदालत ने कहा कि एफएसएसएआई का निर्णय “जन स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर चिंताओं” पर आधारित है और यह पूरा कदम उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए नियामक रूप में उठाया गया है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने 31 अक्तूबर को पारित आदेश में कहा कि अदालत एफएसएसएआई के 14 और 15 अक्तूबर को जारी आदेशों में हस्तक्षेप करने के लिए तैयार नहीं है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि इस तरह के उत्पादों से उन लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिन्हें चिकित्सीय रूप से वास्तविक ओआरएस की आवश्यकता होती है। इसलिए अदालत को इस मामले में किसी तरह की रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं दिखता।
डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज की याचिका खारिज
अदालत ने डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज लिमिटेड की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें कंपनी ने एफएसएसएआई के निर्देश को चुनौती दी थी। इस आदेश के तहत कंपनी को अपने रेबलांज़ विटर्स (Rebalanz Viters) ब्रांड पर ‘ओआरएस’ लेबल का उपयोग बंद करने को कहा गया था।
सुनवाई के दौरान कंपनी के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने इस नाम से नए उत्पादों का निर्माण पहले ही बंद कर दिया है।
एफएसएसएआई का आदेश — उपभोक्ताओं को भ्रम से बचाना उद्देश्य
एफएसएसएआई ने 14 अक्तूबर को जारी आदेश में कहा था कि कोई भी खाद्य या पेय पदार्थ कंपनी अपने उत्पाद या ब्रांडिंग में ‘ओआरएस’ शब्द का उपयोग तभी कर सकती है, जब वह निर्धारित चिकित्सीय फॉर्मूलेशन मानकों का पालन करे।
प्राधिकरण ने स्पष्ट किया था कि शर्करायुक्त या इलेक्ट्रोलाइट युक्त पेय पदार्थों में ‘ओआरएस’ शब्द का प्रयोग उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकता है, विशेषकर बच्चों और बीमार व्यक्तियों को। एफएसएसएआई ने इसे खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 का उल्लंघन बताया था।
जन स्वास्थ्य को सर्वोपरि बताया अदालत ने
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एफएसएसएआई का कदम सार्वजनिक हित में है, और इस पर रोक लगाना जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होगा। अदालत ने कहा कि “जब बात लोगों की सेहत की हो, तो न्यायालय को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।”