नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दिल्ली में आयोजित छठे रामनाथ गोयनका लेक्चर में ब्रिटिश इतिहासकार और पॉलिटिशियन थॉमस बैबिंगटन मैकाले का जिक्र करते हुए कहा कि 10 साल बाद, यानी 2035 में, भारत के लिए उस समय की गई नीतियों के 200 साल पूरे हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि मैकाले ने 1835 में भारतीय शिक्षा व्यवस्था में इंग्लिश को लागू कर देश की सांस्कृतिक नींव को प्रभावित करने का प्रयास किया था।
पीएम मोदी ने कहा कि जापान, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने पश्चिमी तकनीक अपनाई, लेकिन अपनी स्थानीय भाषाओं से समझौता नहीं किया। इसी सोच के तहत नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) लोकल भाषाओं में शिक्षा पर विशेष जोर देती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार इंग्लिश के खिलाफ नहीं है, बल्कि भारतीय भाषाओं को मजबूत करने की दिशा में कदम उठा रही है।
मैकाले का प्रभाव और भारतीय शिक्षा
1835 में, मैकाले ने ‘Minute on Indian Education’ जारी किया, जिसमें उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में इंग्लिश को लागू करने और पश्चिमी विज्ञान व साहित्य की पढ़ाई शुरू करने की बात कही। उनका उद्देश्य एक नया भारतीय वर्ग तैयार करना था, जो पश्चिमी शिक्षा और अंग्रेज़ी भाषा अपनाकर ब्रिटिश प्रशासन और आम जनता के बीच सेतु का काम करे।
मैकाले के फैसले का तत्काल असर यह हुआ कि भारतीय पारंपरिक शिक्षा और स्थानीय भाषाओं का महत्व कम हो गया। इसके लंबे समय तक प्रभाव ने समाज में कल्चरल और ज्ञान-संबंधी क्षति पैदा की। पीएम मोदी ने इसे ‘साइकोलॉजिकल स्लेवरी’ बताते हुए कहा कि इसे हमेशा के लिए खत्म करना आवश्यक है।
आगे का लक्ष्य: स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत
प्रधानमंत्री ने कहा, “1835 में मैकाले ने भारत की जड़ों से खिलवाड़ किया और गुलामी की नींव रखी। 2035 में इस बुराई को 200 साल पूरे होंगे। अगले दस वर्षों में हमारा लक्ष्य भारत को गुलामी की सोच से पूरी तरह मुक्त करना है।”
पीएम मोदी ने कहा कि यह दशक भारत के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे 2035 तक शिक्षण और संस्कृति में हुए नुकसान की भरपाई के लिए दिशा-निर्देश मानकर काम करना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत अब अपनी भाषाओं, संस्कृति और ज्ञान को पुनर्जीवित कर रहा है और शिक्षा के क्षेत्र में स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ रहा है।