दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष समारोह की तीन दिवसीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है, आज मैं आपसे संघ के बारे में चर्चा करूंगा। भारत है इसलिए संघ है, और हमारे लिए देश सबसे ऊपर है, इसलिए हम भारत माता की जय कहते हैं।”
भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ को लेकर कई तरह की बातें होती रहती हैं, लेकिन अक्सर उनमें प्रामाणिकता की कमी होती है। उन्होंने कहा कि संघ के बारे में चर्चा तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि केवल धारणाओं पर।
“हिंदू वह है जो साथ चलने की परंपरा निभाता है”
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “जिसकी परंपरा साथ लेकर चलने की है, वही हिंदू है। संघ की स्थापना के समय ही यह निश्चय किया गया था कि पूरे हिंदू समाज को संगठित करना है। नेता, नीति और पार्टी सहायक मात्र हैं, वास्तविक कार्य समाज परिवर्तन का है। राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक गुणों का विकास करना होगा।”
“भारत माता की जय ही संघ का मूल मंत्र”
भागवत ने कहा कि सौ साल पूरे होने के बाद भी संघ नए आयामों की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि संघ की प्रार्थना के अंत में रोज़ कहा जाता है- “भारत माता की जय”। उन्होंने कहा, “यह हमारा देश है, इसे विश्व पटल पर अग्रणी स्थान दिलाना हमारा कर्तव्य है।”