अर्जुन अवार्ड व पदमश्री पुरस्कार से अलंकृत 1964 ओलंपिक हॉकी स्वर्ण पदक विजेता टीम के कप्तान रहे चरणजीत सिंह किसी पहचान के मोहताज नहीं है। छात्र जीवन में पढ़ाई में अव्वल रहने वाले चरणजीत सिंह देश के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार रहे। पढ़ाई हो या खेल हर क्षेत्र में अव्वल रहने की ललक ने उन्हें एक सफल खिलाड़ी व युवाओं का रोल माडल बना दिया। जिला ऊना के मैड़ी गांव के मूल निवासी पदमश्री चरणजीत सिंह का जन्म नैहरियां में 22 अक्तूबर को हुआ था।

गांव में प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद लायलपुर एग्रीकल्चर कॉलेज से बीएससी कृषि की उपाधि हासिल करने के बाद सारा ध्यान हॉकी खेल पर लगा दिया। 1949 में पहली बार यूनिवर्सिटी की तरफ से खेले। 1958 से 1965 तक लगातार देश का प्रतिनिधित्व किया। इसी दौरान 1960 व 1964 के दो ओलंपिक तथा एक एशियन स्पर्धा में भाग लिया।

1964 में स्वर्ण पदक विजेता हॉकी की ओलंपिक टीम के कप्तान रहे,जबकि 1960 में सेमीफाइनल में फ्रेक्चर होने के कारण फाइनल नहीं खेल पाए तथा भारत को हार झेलनी पड़ी थी। पदमश्री चरणजीत सिंह, बलबीर सीनियर, पिरथीपाल जैसे धुंरधरों की टीम को उस समय स्टार स्टडड टीम का नाम दिया गया था। सभी दर्शक चाहते थे कि हर प्रतियोगिता में यही टीम खेलने उतरे।

पंजाब पुलिस में एएसआई के रूप में भर्ती हुए तथा 14 साल की नौकरी के बाद डीएसपी पद से रिटायरमेंट ले ली। इसके बाद लुधियाणा कृषि विवि में उपनिदेशक स्टूडेंट वेलफेयर व हिसार कृषि विवि में 7 साल काम किया। 1972 में पिता के कहने पर अपने प्रदेश हिमाचल में नौकरी की शुरूआत की।

प्रदेश विवि शिमला में निदेशक फिजिकल एजुकेशन व यूथ प्रोग्राम के तौर पर कार्यरत रहे। 1990 से 92 तक प्रदेश के पहले प्रो. एमीरेटस के रूप में कार्य किया।

चरणजीत सिंह 90 साल की आयु तक कभी बीमार तक नहीं हुए, लेकिन इसी साल उन्हें अधरंग रोग का अटैक हुआ। रिटायरमेंट के बाद लगातार हर रोज इंदिरा स्टेडियम में खिलाड़ियों व कोच के साथ समय बिताना रूटीन बन गया था। किसी भी खेलों से जुड़ा कोई कार्यक्रम तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक पदमश्री चरणजीत सिंह की शिरकत उसमें न हो।