भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने डेटा और ऑडिट के नियमों के पालन को लेकर विदेशी बैंकों को फटकार लगाई है. आरबीआई (RBI) ने डेटा लोकलाइजेशन (Data Localisation) नियमों का पालन नहीं करने वाले देश में मौजूद विदेशी बैंकों की खिंचाई की है. केंद्रीय बैंक ने कहा कि विदेशी बैंकों ने ऑडिट रिपोर्ट नहीं सौंपे हैं.
डेटा लोकलाइजेशन का मतलब है कि देश में रहने वाले नागरिकों का प्राइवेट डेटा का कलेक्शन, प्रोसेस और स्टोर करके देश के भीतर ही रखा जाए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थानांतरित करने से पहले लोकल प्राइवेसी कानू या डेटा प्रॉटक्शन कानून की शर्तों को पूरा किया जाए.
विदेशी बैंकों ने नहीं किया नियमों का पालन
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में RBI ने कहा कि अधिकांश बैंकों को सर्कुलर जारी होने के तीन साल बाद भी डेटा स्टोर नियमों के अनुपालन को प्रमाणित करने वाली सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट जमा करना बाकी है. केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि कई विदेशी बैंकों ने कहा है कि ऑडिट नियम उन पर लागू नहीं होते और यह स्वीकार्य नहीं था. केंद्रीय बैंक ने बैंकों से कहा था कि वे 15 मई, 2021 को या उससे पहले प्लान के साथ अपना कम्पलायंस पेश करें
बता दें कि आप जब भी अपना क्रेडिट/डेबिट कार्ड स्वाइप करते है, किसी सोशल मीडिया वेबसाइट को यूज करते हैं, किसी कंपनी का प्रोडक्ट लेने के लिए अपनी जानकारी देते हैं तो आप अपना डेटा उनसे साझा कर रहे होते हैं. अभी इसमें से अधिकतर डेटा भारत के बाहर सेव होता है, वह भी क्लाउड स्टोरेज पर. इस डेटा पर भारतीय सरकार की उतनी पकड़ नहीं होती. लोकलाइजेशन से कंपनियों के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह ग्राहकों से जुड़ा क्रिटिकल डेटा देश में ही स्टोर करें.
डेटा लोकलाइजेशन के फायदे
सरकार का तर्क है कि डेटा लोकलाइजेशन से नागरिकों की निजी और वित्तीय जानकारियां सेफ रहेंगी. पिछले कुछ सालों में, मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं ने भी डेटा लोकलाइजेशन के पक्ष में बहस को मजबूत किया है.
विदेशी साइबर हमलों और सर्विलांस से बचने के लिए भी डेटा लोकलाइजेशन की जरूरत बताई जाती रही है. फेसबुक के कैम्ब्रिज एनालिटिका संग यूजर डेटा शेयर करने का खुलासा होने के बाद, दुनिया भर की सरकारें डेटा लोकलाइजेशन चाहती हैं.