टाटा का लोहा, टाटा की गाड़ियों की मजबूती के लिए अक्सर ये बात कही जाती है. देश में 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग कारों की एक पूरी फौज भी टाटा के पास है. लेकिन आज हम आपको टाटा की एक ऐसी गाड़ी के बारे में बताने जा रहा हैं, जो असल में खुद ही पूरा लोहा है. ये एक रोड रोलर है. अगर इसे टाटा ने नहीं बनाया होता, तो आज देश में सड़क बिछाना काफी मुश्किल होता.
कहानी शुरू होती है आजादी के तुरंत बाद से. साल 1948 के आसपास टाटा मोटर्स ने देश का पहला स्वदेशी रोड रोलर बनाया. ये रोड रोलर कई मायनों में खास था. उस समय टाटा मोटर्स को ‘TELCO’ नाम से जाना जाता था.
‘सिटी ऑफ डेल्ही’ रखा नाम
टाटा ग्रुप ने इस लोहालाट, भारी भरकम रोड-रोलर का नाम ‘सिटी ऑफ डेल्ही’ (दिल्ली का शहर) रखा. इसकी खासियत एक तो ये थी कि ये पूरी तरह देश में बना पहला स्वदेशी रोड रोलर था. वहीं ये भाप से चलता था. इसका फायदा ये था कि इसे कोयले से चलाया जा सकता था. ये देश के उन हिस्सों में भी पहुंच सकता था, जहां पेट्रोल और डीजल की पहुंच नहीं थी.
साल 1948 में आज ही के दिन यानी 22 अप्रैल को इसे पहली बार सड़क पर उतारा गया. टाटा ग्रुप के बसाए जमशेदपुर शहर में सड़कों पर जब ये रोड रोलर पहुंचा तो उसे देखने के लिए आम लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. देश के लोगों के लिए इतने बड़े आकार के किसी वाहन को सड़क पर चलते देखना उस समय एक बड़ा कौतूहल था. आज भी हमारे देश में लोग जेसीबी की खुदाई को सड़क पर खड़े होकर देखने लगते है.
बना चुका था ‘टाटानगर’
टाटा ग्रुप इससे पहले भी एक अनोखी गाड़ी ‘टाटानगर’ बना चुका था. ये गाड़ी भी उसकी ‘लोहा’ वाली पहचान को मजबूती से स्थापित करती थी. दूसरे वर्ल्ड वॉर के टाइम पर टाटा ग्रुप आर्मी की जरूरत के लिए स्पेशल स्टील आर्मर प्लेट बना रहा था. ये बख्तरबंद गाड़ी और टैंक बनाने में काम आता था.
बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने टाटा को इन प्लेटों की मदद से बनने वाले ब्ख्तरबंद वाहन को भी बनाने का काम दे दिया. तब टाटा ग्रुप ने भारतीय रेलवे के साथ मिलकर एक लड़ाकू कार तैयार की. इस कार में Ford V8 इंजन लगाया गया. इस गाड़ी को नाम इंडियन पैटर्न कैरियर दिया गया, लेकिन असल में ये पॉपुलर Tatanagar (टाटानगर) नाम से हुई.