कल विक्रम संवत 2081 ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तदनुसार 16 जून, सन 2024 दिन रविवार है, जिसे यानी यह ज्येष्ठ के दशहरा का दिन है, जिसे आम भाषा में जेठ का दशहरा कहा जाता है। वैदिक सनातन संस्कृति को मानने वाले अर्थात सभी जातियों के हिन्दू इस दिन गंगा स्नान करने को अति महत्वपूर्ण मानते हैं। कार्तिक पूर्णिमा स्नान की भांति जेठ के दशहरे के गंगा स्नान को मोक्षदायक माना गया है।

हमारे आदि ग्रंथों में गंगा स्नान के महात्म का विषद वर्णन है। आदि शंकराचार्य ने 'गंगा स्तोत्रम्' लिख कर माँ गंगा और उसमें स्नान की महिमा का शताब्दियों पूर्व खूब बखान किया था, उसका एक ही श्लोक गंगा व उसमें स्नान के महत्व को दर्शाता है:

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।

गंगा स्नान से 10 अश्वमेध यज्ञों और 1000 गायों के दान का फल मिलता है। गंगा पूजन से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है, यश, सम्मान प्राप्त होता है। पापों का क्षय (विनाश) होता है।

हम सौभाग्यशाली है कि प्रभु ने हमें मोक्ष के द्वार हरिद्वार के समीप जन्मा जहां लाखों लोग कार्तिक पूर्णिमा, ज्येष्ठ की दशमी, संक्रान्ति आदि पर्वो पर गंगा स्नान हेतु आते हैं। यद्यपि श्री शुकदेव धाम के समीप बहने वाली गंगा कालान्तर में यहां से कई किलोमीटर दूर खिसक गई है, तथापि शुकतीर्थ पर अब भी स्नान पर्वों पर भीड़ उमड़‌ती है। इसी प्रकार बिजनौर जनपद में कई स्थानों पर कार्तिक व ज्येष्ठ मास में बड़े मेले लगते हैं। गढ़ मुक्तेश्वर का गंगा स्नान मेला लक्खी मेला कहलाता है। कैराना (शामली) में कई स्थानों पर यमुना के किनारे मेले लगते हैं।

अब से 50-60 वर्ष पूर्व मुजफ्फरगर के बीच से गुज़रने वाले रजबहे पर जेठ के द‌शहरे पर मेला लगता था। नवीन मंडी स्थल के सामने से जानसठ रोड के चौराहे तक रजबहे में स्नान करने वालों का हुजू‌म रहता था। बच्चे जलेबी, गुब्बारे खरीदते थे। खूब चहल पहल होती थी। अब इस रजबहे का नाम-ओ-निशान नहीं हैं। इसे पाट कर बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गई हैं। यह तथाकथित विकास का क्रूरतम स्वरूप है।

शिक्षा ऋषि और शुकतीर्थ के उद्धारक स्वामी कल्याण देव का सपना था कि गंगा की धारा शुक्रताल आ जाए। नेताओं के वायदों में वह सपना बह गया। अब तो लोगों को सोलानी के गंदे पानी में स्नान करने को मजबूर होना पड़ता है। यह स्थिति कब सुधरेगी, सुधरेगी भी, कुछ नहीं कहा जा सकता। जय माँ गंगे !

गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'