नई दिल्ली। राज्यसभा में भाजपा सांसद भीम सिंह द्वारा पेश किए गए प्राइवेट मेंबर बिल ने देश की राजनीति में नई बहस को जन्म दिया है। इस बिल में संविधान की प्रस्तावना से ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द हटाने की मांग की गई है। सांसद का कहना है कि ये शब्द 1976 में आपातकाल के दौरान बिना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जोड़े गए थे और अब इन्हें हटाकर संविधान को उसके मूल स्वरूप में लौटाना आवश्यक है।

बीम सिंह का दावा: मूल संविधान पहले से धर्मनिरपेक्ष

भाजपा सांसद भीम सिंह ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में मूल रूप से ये शब्द शामिल नहीं थे। उन्हें 42वें संशोधन के जरिए तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने जोड़ा था। सिंह का आरोप है कि उस समय विपक्ष के बड़े नेता जेल में थे और संसद में किसी तरह की खुली बहस नहीं हुई। उन्होंने कहा कि शब्द जोड़ने का निर्णय तत्कालीन राजनीतिक हितों और मजबूरी के तहत किया गया था।

डॉ. बीआर आंबेडकर के हवाले से सांसद ने कहा कि संविधान की संरचना ही भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाती है, इसलिए ‘सेक्युलर’ शब्द जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं थी। साथ ही उन्होंने कहा कि ‘सोशलिस्ट’ शब्द भी जरूरी नहीं था, क्योंकि संविधान पहले से ही समानता और न्याय की गारंटी देता है।

राजनीतिक तुष्टिकरण का आरोप

बीम सिंह ने दावा किया कि ‘सेक्युलर’ शब्द मुसलमानों को खुश करने और ‘सोशलिस्ट’ शब्द तत्कालीन सोवियत संघ की नीतियों को ध्यान में रखकर जोड़ा गया था। उनके अनुसार, इन शब्दों से केवल भ्रम पैदा हुआ है, जबकि संवैधानिक मूल सिद्धांत पहले से ही स्पष्ट हैं। उन्होंने कहा कि शब्द हटाने से किसी मौलिक अधिकार या संवैधानिक प्रावधान पर असर नहीं पड़ेगा।

विपक्ष की प्रतिक्रिया और सांसद का जवाब

सांसद ने कहा कि विपक्ष इसे संविधान पर हमला बताएगा, लेकिन उनका उद्देश्य केवल बहस को शुरू करना और जनता को यह समझाना है कि ये शब्द किन परिस्थितियों में जोड़े गए और अब उन्हें हटाने की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या 1976 से पहले भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं था और क्या नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री या इंदिरा गांधी की सरकारें सांप्रदायिक थीं।

प्राइवेट मेंबर बिल की संभावना

हालांकि प्राइवेट मेंबर बिलों के पास पारित होने की संभावना कम होती है, लेकिन भीम सिंह का मानना है कि इस बिल से सरकार और जनता दोनों का ध्यान संविधान की प्रस्तावना और उसमें किए गए संशोधनों की ओर जाएगा। उनका कहना है कि बहस को जागरूकता बढ़ाने और इतिहास को समझने के उद्देश्य से उठाया गया कदम है।