असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने शुक्रवार को बयान देते हुए कहा कि राज्य में सरकारी, वन और अन्य सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा करने वालों में वे लोग भी शामिल हैं जो खुद को बिहार जैसे राज्यों से संबंधित बताते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के नाम, पते और अन्य विवरण संबंधित राज्यों के प्रशासन को भेजे जाएंगे ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि वे वास्तव में वहीं के निवासी हैं या नहीं।
मुख्यमंत्री ने बताया कि जब अतिक्रमणकारियों की सूची की जांच की गई, तो स्पष्ट हुआ कि इनमें केवल असम के स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से आए लोग भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कछार, श्रीभूमि, धुबरी, होजई, नागांव और मोरीगांव जैसे जिलों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां अतिक्रमण करने वाले खुद को बिहार से आने वाला बता रहे हैं। उन्होंने इस आशंका को भी जताया कि कुछ लोग सीमा पार से आए हो सकते हैं।
“सरकार सिर्फ देखती नहीं रह सकती”
मुख्यमंत्री सरमा ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति वास्तव में जिस राज्य का दावा कर रहा है, वहीं का निवासी है, तो उससे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन यदि वे अवैध रूप से किसी क्षेत्र में बसे हैं, तो स्थानीय प्रशासन आवश्यक कदम उठाएगा। उन्होंने बताया कि उरियमघाट क्षेत्र में सैकड़ों बीघा वन भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है और सरकार इस पर चुप नहीं बैठ सकती।
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्थानीय लोगों ने उन्हें जानकारी दी है कि अतिक्रमित क्षेत्रों में नशाखोरी और चोरी जैसी गतिविधियाँ पनप रही हैं। उन्होंने कहा कि जब भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया जाएगा, तब वहां के स्थानीय युवा संसाधनों का बेहतर उपयोग कर रोजगार और व्यवसाय के अवसर विकसित कर सकते हैं।
सरमा ने यह भी बताया कि अधिकांश अतिक्रमणकारी पहले ही स्वयं ही जगह छोड़ चुके हैं और शेष लोग भी जल्द ही वैधानिक कार्रवाई से पहले ही चले जाएंगे। उरियमघाट के अतिरिक्त नेग्रिबिल क्षेत्र में भी बेदखली के नोटिस जारी कर दिए गए हैं।
नगालैंड से मिल रहा सहयोग
जब मुख्यमंत्री से यह पूछा गया कि नगालैंड की सीमा से लगे अतिक्रमित इलाकों को लेकर वहां की सरकार से क्या सहयोग मिल रहा है, तो उन्होंने बताया कि नगालैंड की सरकार केवल यह सुनिश्चित करना चाहती है कि बेदखल किए गए लोग उनके राज्य में प्रवेश न करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब भी सहयोग मांगा गया, पड़ोसी राज्य ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
सरमा ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार केवल बेदखली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वैष्णव मठों की भूमि और चारागाहों को भी चरणबद्ध तरीके से अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार यह नहीं चाहती कि यह संदेश जाए कि केवल बेदखली की जा रही है, क्योंकि इससे न्यायालय भी सवाल उठा सकता है। इसलिए पूरा अभियान योजनाबद्ध और संवेदनशील ढंग से चलाया जा रहा है।