दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की सटीक संख्या का अभाव स्थानीय निकायों के सामने बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ठोस आंकड़ों के बिना नगर पालिकाएं न तो आश्रय गृहों की रूपरेखा तय कर सकती हैं और न ही व्यापक नसबंदी अभियान को प्रभावी ढंग से लागू कर सकती हैं। इसी कारण पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए व्यवस्थित गणना को अनिवार्य बताया गया है।

एबीसी कार्यक्रम पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के अंतर्गत संचालित होता है। केंद्र सरकार की यह पहल आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने और नसबंदी व टीकाकरण के जरिये मनुष्य-पशु टकराव को कम करने पर केंद्रित है।

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘एसया सेंटर’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2022 से 2025 के बीच देशभर में 126 लोगों की मौत रेबीज से दर्ज हुई, जबकि दिल्ली में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया। रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि रेबीज केवल कुत्तों से ही नहीं, बल्कि गायों और बंदरों जैसे अन्य स्तनधारियों से भी फैल सकता है, इसलिए आंकड़ों में और स्पष्टता की जरूरत है। इसके साथ ही दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की संख्या तीन लाख से लेकर दस लाख तक के बीच मानी जा रही है, जो अधिकारी वर्ग के लिए योजना तैयार करने में उलझन पैदा करती है।

विशेषज्ञ बोले—गणना के बिना योजना असंभव
रिपोर्ट में कहा गया है कि आवारा कुत्तों की वास्तविक संख्या का पता लगाए बिना नगरपालिका के लिए आश्रय गृहों का विस्तार या नसबंदी अभियान चलाना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। सात नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी सार्वजनिक स्थलों—विशेषकर अस्पताल और स्कूल—पर कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए आवारा कुत्तों को निर्धारित आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एनएचएआई सहित सभी संबंधित एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाईवे और एक्सप्रेसवे पर भटकते जानवरों व मवेशियों की रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

एसया सेंटर की निदेशक और रिपोर्ट की लेखिका मेघना बल ने कहा कि समुदाय की सक्रिय भागीदारी गणना अभियान की सफलता में अहम भूमिका निभा सकती है। सर्वेक्षण में अधिकतर लोगों ने एबीसी कार्यक्रम का समर्थन करते हुए कहा कि वे अपने आसपास रहने वाले या देखभाल किए जाने वाले जानवरों का पंजीकरण कराने में सहयोग करने को तैयार हैं।