नई दिल्ली। मलेरिया के खिलाफ भारत को एक बड़ी वैज्ञानिक सफलता मिली है। देश ने अपनी पहली देशी मलेरिया वैक्सीन विकसित कर ली है, जो प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी के खिलाफ प्रभावी मानी जा रही है। यह वैक्सीन न केवल संक्रमण को रोकने में कारगर है, बल्कि इसके प्रसार पर भी अंकुश लगाने में सक्षम है।
यह वैक्सीन ICMR के भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित की गई है और इसका नाम ‘Edvaxfalci’ (एडफाल्सीवैक्स) रखा गया है।
उद्योगों से आवेदन आमंत्रित
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अब इस टीके के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए कंपनियों और निर्माताओं से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर हेतु आवेदन मांगे हैं। इसके लिए इच्छुक पक्षों से ‘एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ (EOI) आमंत्रित किए गए हैं।
वैक्सीन की खास विशेषताएं
यह टीका मलेरिया के उन प्रारंभिक चरणों को निशाना बनाता है, जब परजीवी रक्तप्रवाह में प्रवेश करता है। इसे लैक्टोकोकस लैक्टिस नामक जीवाणु की मदद से तैयार किया गया है, जो दही और पनीर जैसी चीज़ों में सामान्यतः पाया जाता है।
इस टीके को विकसित करने के लिए ICMR-NIMR, अन्य अनुसंधान संस्थानों और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान ने मिलकर पूर्व-नैदानिक परीक्षण किए, जिनमें इसके प्रभावी परिणाम सामने आए।
प्री-क्लीनिकल आंकड़ों के मुताबिक, यह टीका एकल चरण वाले मौजूदा टीकों की तुलना में बेहतर है। यह शरीर की दीर्घकालिक प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है और कमरे के तापमान पर नौ महीने तक स्थिर रह सकता है।
भारत की मलेरिया मुक्त होने की दिशा में एक और कदम
भारत में मलेरिया से निपटने के प्रयास कई वर्षों से जारी हैं। 2015 से 2023 के बीच मलेरिया के मामलों में 80.5% की कमी और मौतों में 78.38% की गिरावट दर्ज की गई है। इस प्रगति के चलते भारत अब WHO के ‘हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट’ (HBHI) समूह से बाहर आ गया है।
सरकार का लक्ष्य 2027 तक मलेरिया के मामलों को शून्य करना और 2030 तक इस बीमारी का पूर्ण उन्मूलन है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
विश्व स्तर पर मलेरिया हर साल करीब 26.3 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और 6 लाख से अधिक लोगों की जान ले लेता है। ऐसे में भारत द्वारा स्वदेशी वैक्सीन का विकास न केवल देश के लिए बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिहाज से भी एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।