इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने की संसदीय प्रक्रिया अब गति पकड़ती नजर आ रही है। इसी क्रम में मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से उनके आवास पर मुलाकात की। सूत्रों के अनुसार, यह बैठक न्यायाधीश के खिलाफ पेश किए जाने वाले महाभियोग प्रस्ताव को लेकर हुई।
इससे पहले सोमवार को संसद भवन स्थित लोकसभा अध्यक्ष कार्यालय में वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक हुई थी, जिसमें प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता और राजनीतिक रणनीति पर चर्चा की गई। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने जानकारी दी कि प्रस्ताव पर विभिन्न दलों के कुल 152 सांसदों के हस्ताक्षर हैं।
राज्यसभा में भी उठा मुद्दा
इस मामले में विपक्षी दल भी सक्रिय हैं। राज्यसभा में भी न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ समान प्रस्ताव लाया गया है। ऐसे में माना जा रहा है कि दोनों सदनों में समन्वय बनाते हुए आगे की कार्रवाई की जाएगी, हालांकि मुख्य पहल लोकसभा से होने की संभावना अधिक जताई जा रही है।
क्या हैं आरोप?
जस्टिस यशवंत वर्मा पर एक कथित भ्रष्टाचार मामले को लेकर सवाल उठे हैं। हालांकि अभी तक इस प्रकरण से जुड़े विस्तृत दस्तावेज सार्वजनिक नहीं हुए हैं, लेकिन प्रारंभिक तौर पर इसे गंभीर मामला माना जा रहा है, जिससे न्यायिक संस्थानों की निष्पक्षता और गरिमा पर प्रश्नचिह्न लग रहा है।
महाभियोग प्रक्रिया की संवैधानिक व्यवस्था
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उनके आचरण या कार्य निष्पादन के आधार पर संसद के माध्यम से हटाया जा सकता है। इसके लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना आवश्यक होता है। इसके पश्चात राष्ट्रपति की स्वीकृति से न्यायाधीश को पद से मुक्त किया जा सकता है।
संवेदनशील और दुर्लभ प्रक्रिया
जजों के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया भारतीय लोकतंत्र में अत्यंत असाधारण मानी जाती है। पूर्व में ऐसे प्रयास हुए हैं, किंतु अधिकांश प्रस्ताव अंतिम चरण तक नहीं पहुंच सके। इस कारण केंद्र सरकार, विपक्ष और न्यायपालिका सभी इस प्रकरण में अत्यंत सतर्कता और संवैधानिक मर्यादाओं के साथ आगे बढ़ रहे हैं।