सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को टिप्पणी की कि यदि कोई वकील केवल अपने मुवक्किल को कानूनी सलाह दे रहा है, तो जांच एजेंसियां उसे समन जारी नहीं कर सकतीं। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि वकील किसी अपराध में मुवक्किल की सहायता कर रहा है, तो ऐसी स्थिति में उसे तलब किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने इस टिप्पणी को स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान रखा, जिसमें जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को पूछताछ के लिए बुलाने का मुद्दा उठाया गया था।
बार संगठनों की आपत्ति
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने वकीलों को नियमित रूप से समन जारी किए जाने पर आपत्ति जताई। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि अगर वकीलों को सलाह देने भर के लिए पूछताछ के लिए बुलाया जाने लगा तो वे संवेदनशील मामलों में कानूनी सलाह देने से हिचकिचाएंगे।
उन्होंने सुझाव दिया कि किसी वकील को तलब करने से पूर्व जिला स्तर पर पुलिस अधीक्षक और न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति अनिवार्य की जाए। अदालत ने भी संकेत दिया कि ऐसे मामलों में न्यायिक निगरानी की जरूरत हो सकती है।
ईडी का जवाब और निर्देश
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सहमति जताते हुए कहा कि वकीलों को केवल कानूनी सलाह देने के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि वकील और मुवक्किल के बीच बातचीत की गोपनीयता संविधान और कानून से संरक्षित है, लेकिन किसी विशेष वर्ग को विशेष प्रक्रिया देने से समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन हो सकता है।
ईडी ने हाल ही में वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन जारी किया था। इसके बाद ईडी ने जांच अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में वकीलों को समन न करें, जब तक निदेशक की अनुमति न हो।
सुनवाई की अगली तारीख और निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने SCBA और SCAORA से तीन दिन के भीतर अपने लिखित सुझाव सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सौंपने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी, जिसमें केंद्र सरकार अपना पक्ष रखेगी।
पिछले आदेश का संदर्भ
इससे पहले 25 जून को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि पुलिस या एजेंसियों द्वारा वकीलों को सीधे तलब करना कानून की स्वायत्तता और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा है।