तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले पर राष्ट्रपति के सवाल, सीएम स्टालिन ने जताई नाराजगी

तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उठाए गए सवालों पर विवाद बढ़ गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस पर कड़ा विरोध जताया है और गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इस मामले में एकजुट होने की अपील की है।

सीएम स्टालिन का पत्र: राज्यों के हित में एकजुटता की मांग
मुख्यमंत्री स्टालिन ने पत्र में कहा कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट के सलाहकार अधिकार का उपयोग करते हुए 14 प्रश्न उठाए हैं। यद्यपि इसमें किसी विशेष राज्य का जिक्र नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि ये सवाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में की गई टिप्पणियों से जुड़े हैं। स्टालिन ने लिखा कि यह फैसला सिर्फ तमिलनाडु के लिए नहीं, बल्कि सभी राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है।

राज्यपालों के कार्यों पर सवाल
स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों का उपयोग सरकारी कार्यों में बाधा डालने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल विधेयकों पर निर्णय में देरी करते हैं या बिना वैध कारण उन्हें रोकते हैं, जिससे राज्यों का प्रशासनिक कार्य प्रभावित होता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन
मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल मामले में स्पष्ट किया था कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक रोक लगाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के कर्तव्यों के लिए समय-सीमा भी निर्धारित की थी, जिससे लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे की रक्षा हो सके।

भाजपा पर हमला: निर्णय को कमजोर करने का आरोप
स्टालिन ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह इस फैसले को कमजोर करने की कोशिश कर रही है ताकि अन्य राज्य इसे न अपनाएं। उन्होंने कहा कि भाजपा ने राष्ट्रपति से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप की योजना बनाई है। स्टालिन ने अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों और क्षेत्रीय दलों से अपील की कि वे संविधान की मूल संरचना की रक्षा के लिए एकजुट हों।

विवाद का मूल: सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल विधानसभा से पारित बिलों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। अगर राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।

राष्ट्रपति के सवाल: समयसीमा पर स्पष्टता की मांग
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में विधेयकों को मंजूरी देने या रोकने के लिए कोई स्पष्ट समयसीमा निर्धारित नहीं है। साथ ही, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के कुछ निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि राष्ट्रपति की मंजूरी की न्यायिक समीक्षा को लेकर भी विरोधाभासी राय है, जिसे स्पष्ट किया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री स्टालिन के इस कदम से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है और राज्यों के बीच इस मुद्दे पर एकजुटता की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

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