राज्यसभा ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने संबंधी विपक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, जिससे इसे वापस लेने की प्रक्रिया भी स्वतः ही निरर्थक हो गई। यह घटनाक्रम ऐसे समय हुआ है जब न्यायपालिका को लेकर राजनीतिक माहौल गर्माया हुआ है और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से जुड़े घटनाक्रम भी इसी कड़ी में देखे जा रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, विपक्ष के कई दलों द्वारा मिलकर जो प्रस्ताव पेश किया गया था, उसे उच्च सदन में औपचारिक स्वीकृति ही नहीं मिली। संसदीय प्रक्रिया के तहत किसी भी प्रस्ताव को वापस लेने या उस पर चर्चा की प्रक्रिया शुरू करने के लिए पहले उसका स्वीकृत होना अनिवार्य होता है।
एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा, “जब प्रस्ताव एडमिट ही नहीं हुआ, तो उसे वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता। समिति गठित करने का निर्णय लोकसभा अध्यक्ष लेंगे, जिसमें राज्यसभा की सहमति आवश्यक होगी।”
उल्लेखनीय है कि सोमवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के सभापति की भूमिका में रहते हुए विपक्ष द्वारा जस्टिस वर्मा के खिलाफ पेश प्रस्ताव का उल्लेख किया था। यह कदम उस सहमति के विरुद्ध माना गया, जिसमें सभी दलों ने संवेदनशीलता बरतने पर सहमति जताई थी। माना जा रहा है कि यह घटनाक्रम उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की प्रमुख वजहों में से एक रहा है।