जयपुर: अरावली पहाड़ियों के संरक्षण को लेकर राजस्थान में सियासी और पर्यावरणीय बहस तेज हो गई है। कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सुप्रीम कोर्ट के अरावली से जुड़े फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए केंद्र और चार भाजपा शासित राज्यों—गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली—को जिम्मेदार ठहराया।

सचिन पायलट ने कहा कि अगर सभी भाजपा शासित राज्य और केंद्र मिलकर काम करें, तो सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध कर अरावली क्षेत्र को पूरी तरह संरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने आगाह किया कि अरावली पहाड़ियां एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करती हैं। अवैध खनन और पर्यावरणीय दोहन जारी रहने पर रेगिस्तान का विस्तार, जल संकट, प्रदूषण और जैव विविधता को गंभीर नुकसान होगा। पायलट ने सवाल उठाया कि अगर आज अरावली की रक्षा में नाकामी हुई, तो भविष्य की पीढ़ियों को क्या विरासत मिलेगी।

सचिन पायलट ने बताया कि 26 दिसंबर को जयपुर में छात्र संगठनों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ एक बड़ा मार्च निकाला जाएगा। इसका उद्देश्य अरावली की सुरक्षा के लिए जनसमर्थन जुटाना और सरकारों पर दबाव बनाना है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकारें अवैध खनन पर प्रभावी रोक नहीं लगाकर पर्यावरण को गंभीर खतरे में डाल रही हैं और अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो पूरे क्षेत्र की पारिस्थितिकी असंतुलित हो जाएगी।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बताया कि 2003 में विशेषज्ञ समिति ने ‘100 मीटर’ की परिभाषा की सिफारिश की थी, जिसे 2010 में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश किया। हालांकि, कोर्ट ने इसे तीन दिन बाद खारिज कर दिया। कांग्रेस सरकार ने उस समय अवैध खनन को रोकने के लिए ‘रिमोट सेंसिंग’ तकनीक का उपयोग किया और 15 जिलों में सर्वे के लिए 7 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया। पुलिस और जिला प्रशासन को अवैध खनन रोकने के अधिकार दिए गए।

गहलोत ने सवाल उठाया कि 2010 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज की गई परिभाषा का समर्थन वर्तमान भाजपा सरकार ने क्यों किया और इसे केंद्र सरकार की समिति से सिफारिश करवाई। उन्होंने इसे किसी दबाव या बड़ी साजिश का हिस्सा करार दिया।