नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज उत्पीड़न) के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अब इस धारा के तहत दर्ज मामलों में एफआईआर के दो महीने तक संबंधित पक्ष की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। इसके साथ ही, मामलों को पहले फैमिली वेलफेयर कमेटी को भेजा जाएगा, जो जांच के बाद ही गिरफ्तारी या अन्य कार्रवाई की सिफारिश करेगी।
यह निर्णय उस प्रकरण के संदर्भ में आया है, जिसमें एक महिला आईपीएस अधिकारी ने अपने पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाए थे। इस मामले में पति और उसके पिता को तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइडलाइंस को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी उन दिशा-निर्देशों को भी मान्यता दी है, जिनमें कहा गया था कि दहेज उत्पीड़न के आरोपों की जांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की समीक्षा के बाद ही होनी चाहिए और तब तक कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए।
अनुच्छेद 142 का किया गया प्रयोग
कोर्ट ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत प्रदत्त विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए ‘पूर्ण न्याय’ की दिशा में कदम उठाया। पीठ ने दोनों पक्षों की सहमति पर गौर करते हुए सभी लंबित विवादों का शांतिपूर्ण समाधान निकालने का निर्देश दिया।
बच्चे की अभिरक्षा पर भी टिप्पणी
बच्ची की कस्टडी को लेकर कोर्ट ने आदेश दिया कि उसकी देखरेख मां के पास रहेगी। वहीं, पिता को प्रारंभिक तीन महीने तक निगरानी में मिलने की अनुमति दी गई है, जिसके बाद बच्ची की सुविधा के अनुसार हर माह के पहले रविवार को पिता को मिलने की अनुमति दी जाएगी।
निर्दोषों को मिलेगी राहत, वास्तविक पीड़ितों को न्याय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 498ए के तहत कई बार झूठे आरोपों के कारण निर्दोष व्यक्तियों को जेल जाना पड़ता है। दो महीने की गिरफ्तारी पर रोक से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मामलों की निष्पक्ष जांच हो और दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर मिले। यह निर्णय दहेज उत्पीड़न से जुड़े वास्तविक मामलों को न्याय दिलाने के साथ-साथ झूठे मामलों में फंसे निर्दोषों की रक्षा के लिए भी एक संतुलित प्रयास माना जा रहा है।