वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील

नई दिल्ली। वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलीलें पेश की हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष यह स्पष्ट किया कि इस कानून पर किसी भी प्रकार की अंतरिम रोक उचित नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि वक्फ के लिए प्रैक्टिसिंग मुसलमान होने की शर्त शरिया सिद्धांतों के अनुरूप है। जिस प्रकार मुस्लिम पर्सनल लॉ का लाभ लेने के लिए व्यक्ति को स्वयं को मुसलमान घोषित करना होता है, वैसे ही वक्फ करने वाले के लिए पांच वर्षों तक मुस्लिम रहना जरूरी बताया गया है।

2013 संशोधन में बदला था नियम

मेहता ने यह भी उल्लेख किया कि पुराने कानून में वक्फ का दाता मुसलमान ही होना चाहिए, यह शर्त मौजूद थी। हालांकि 2013 में हुए संशोधन के तहत ‘मुसलमान’ शब्द हटाकर ‘कोई भी व्यक्ति’ कर दिया गया था। हालिया संशोधन में इस बदलाव को पूर्व स्थिति में लाया गया है।

गैर-मुस्लिम भी कर सकते हैं दान

केंद्र सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि कोई गैर-मुस्लिम व्यक्ति, जैसे हिंदू, वक्फ संपत्ति या मस्जिद निर्माण के लिए योगदान देना चाहता है तो वह ऐसा कर सकता है। इसके लिए ट्रस्ट या अन्य माध्यमों का सहारा लिया जा सकता है। कानून इस पर कोई रोक नहीं लगाता।

जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ पर प्रतिबंध उचित

सॉलिसिटर जनरल ने अनुसूचित क्षेत्रों (शिड्यूल एरिया) में वक्फ की अनुमति न देने को उचित ठहराते हुए कहा कि इन क्षेत्रों को संविधान के तहत विशेष रूप से संरक्षित किया गया है। यह प्रतिबंध इन क्षेत्रों की विशिष्टता और संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए लगाया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह शामिल हैं, वक्फ संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक की मांग की गई है। सरकार द्वारा जवाब दाखिल करने के बाद अब याचिकाकर्ता प्रतिउत्तर में अपनी दलीलें दे रहे हैं।

वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं: केंद्र

सरकार ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ एक धार्मिक अवधारणा है, लेकिन इसे इस्लाम का अनिवार्य तत्व नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता ने कहा कि यह कानून केवल वक्फ संपत्तियों के प्रशासनिक प्रबंधन से संबंधित है और इसका धार्मिक मामलों से कोई सीधा संबंध नहीं है।

दान सभी धर्मों में प्रचलित, लेकिन अनिवार्य नहीं

अपने तर्कों में मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि दान हर धर्म में मौजूद है—जैसे हिंदू धर्म में दान, ईसाइयों में चैरिटी और सिख धर्म में सेवा—but यह किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

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