मांगों को लेकर 26 नवंबर 2024 से आमरण अनशन पर चल रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की बड़ी बहन की पोती की मौत हो गई। इसके बावजूद वे वहां न जाकर किसानों की मांगों को लेकर केंद्र के साथ रखी बैठक में शामिल होने पहुंचे। डल्लेवाल की बड़ी बहन राजस्थान के गंगानगर में ब्याही हैं। उनकी पोती राजनदीप कौर गुरुग्राम में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थीं। बीमार होने पर राजनदीप अस्पताल में उपचाराधीन थी। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
बहन की पोती की मौत को लेकर डल्लेवाल ने अपने सोशल मीडिया पेज पर जानकारी साझा की है। किसान नेताओं का कहना है कि जब यह आंदोलन शुरू हुआ था, उस समय डल्लेवाल की पत्नी का निधन हो गया था, लेकिन तीन दिन में सारी रस्में पूरी करने के बाद वे आंदोलन में लौट आए थे। यह सच्चे किसान नेता की निशानी है।
दिल्ली कूच की कोशिश में एक किसान की गई थी जान
एमएसपी की कानूनी गारंटी, किसानों व मजदूरों को कर्ज मुक्त करने समेत करीब 12 मांगों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के बैनर तले पंजाब के अलग-अलग कोनों से किसान दिल्ली कूच के लिए 13 फरवरी, 2024 को शंभू व खनौरी बाॅर्डरों पर जुटे थे, लेकिन हरियाणा पुलिस प्रशासन की तरफ से बैरिकेडिंग करके किसानों को बाॅर्डरों पर ही रोक लिया गया।
हालांकि, इस दौरान किसानों ने आगे बढ़ने के लिए संघर्ष भी किया, लेकिन नाकाम रहे। इसके बाद 21 फरवरी, 2024 को किसान फिर से दिल्ली कूच के लिए बाॅर्डरों से रवाना हुए। इस बार भी किसानों को आगे बढ़ने से रोक लिया गया, लेकिन दोनों तरफ से काफी टकराव हुआ. जिस दौरान एक नौजवान शुभकरण सिंह की मौत हो गई थी और काफी गिनती में किसान घायल भी हुए थे।
डल्लेवाल के आमरण अनशन से मिली मजबूती
इसके बाद भी किसान बाॅर्डरों पर डटे रहे और समय-समय केंद्र के खिलाफ संघर्ष के कार्यक्रम करते रहे, लेकिन बाद में ऐसा लगने लगा कि इस आंदोलन 2.0 ने गति खो दी है। इसे देखते हुए आंदोलन में नई जान फूंकने के लिए किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने 26 नवंबर को आमरण अनशन पर बैठने का एलान कर दिया। डल्लेवाल को रोकने के लिए पुलिस ने उन्हें जबरन खनौरी बॉर्डर से एक दिन पहले ही उठा लिया और लुधियाना डीएमसी दाखिल करा दिया।
किसानों के विरोध के आगे झुकते हुए पुलिस प्रशासन को डल्लेवाल को वापस खनौरी बाॅर्डर भेजना पड़ा। इसी बीच 101 किसानों के जत्थे के छह दिसंबर को शंभू बाॅर्डर से दिल्ली कूच का एलान हुआ। यह जत्था आगे बढ़ने में असफल रहा। इसके बाद आठ दिसंबर को दोबारा दिल्ली कूच के लिए नया जत्था रवाना हुआ। यह जत्था भी नाकाम रहा। फिर 14 दिसंबर को भी किसान आगे नहीं बढ़ सके, परंतु हर बार काफी गिनती किसान हरियाणा पुलिस के साथ टकराव में घायल होते रहे।