बैडमिंटन संकट: शटल कॉक के उत्पादन में आई कमी, कीमतें हुईं दोगुनी

नई दिल्ली। बैडमिंटन खेल इन दिनों एक बड़े संकट से गुजर रहा है। गूस, बतख और हंस के पंख से बनने वाली शटल कॉक का उत्पादन घटने से वैश्विक स्तर पर इसकी भारी कमी महसूस की जा रही है। नतीजतन राष्ट्रीय बैडमिंटन संघों को न केवल पर्याप्त मात्रा में शटल मिल पा रही है बल्कि जो उपलब्ध है, उसकी कीमत भी सामान्य दरों से कई गुना अधिक हो गई है।

सूत्रों के अनुसार, हैदराबाद की पुलेला गोपीचंद अकादमी के पास शटल का मात्र दो सप्ताह का स्टॉक बचा है। यूरोप के कई देशों ने भी इसी समस्या पर चिंता जताई है। यहां तक कि कुछ जगहों पर जूनियर प्रतियोगिताओं में वैकल्पिक उपाय अपनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकट खेल की जड़ों को प्रभावित कर सकता है।

हालांकि विश्व बैडमिंटन संघ (BWF) ने कुछ वर्ष पहले सिंथेटिक शटल को मंजूरी दी थी, लेकिन तकनीकी खामियों के चलते प्रयोग बंद करना पड़ा। इस बीच, कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन बैडमिंटन में पंख का इस्तेमाल पूरी तरह खत्म करने की मुहिम भी चला रहे हैं।

चीन की बदलती खानपान आदतें वजह
भारतीय बैडमिंटन संघ (BAI) के एक अधिकारी ने बताया कि इस संकट की जड़ चीन की बदलती खाने की आदतें हैं। पहले वहां गूस, बतख और हंस का मांस बड़ी मात्रा में खाया जाता था, लेकिन अब लोग सूअर का मांस अधिक पसंद कर रहे हैं। इससे पोल्ट्री प्रसंस्करण कम हुआ और पंखों की उपलब्धता भी घट गई। चूंकि शटल कॉक बनाने के लिए सर्वोत्तम पंख गूस और हंस से ही मिलते हैं, इसलिए स्थिति और गंभीर हो गई है।

16 पंख से बनती है एक शटल कॉक
एक शटल तैयार करने में 16 पंख लगते हैं और यह जल्दी खराब हो जाती है। अनुमान के मुताबिक, एक सामान्य मैच में 20 से 25 शटल तक इस्तेमाल हो जाती हैं। असली पंखों की कमी ने दामों में तेज उछाल ला दिया है।

नए विकल्पों की तलाश
बीएआई ने इस मुद्दे को बीडब्ल्यूएफ के सामने रखते हुए विकल्प तलाशने का अनुरोध किया है। पहले भी कृत्रिम पंख वाले शटल पर परीक्षण हुआ था, लेकिन उनमें सटीकता की दिक्कत रही। अब योनिक्स और ली-निंग जैसी कंपनियां हाइब्रिड शटल पर काम कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द समाधान नहीं निकाला गया तो बैडमिंटन का भविष्य प्रभावित हो सकता है।

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