दिल्ली हाईकोर्ट ने लाल किला विस्फोट मामले में परीक्षण की हर कार्यवाही की न्यायिक निगरानी के लिए अदालत-पर्यवेक्षित समिति बनाने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। याचिका में ट्रायल को रोजाना आधार पर चलाने और उसकी मासिक प्रगति रिपोर्ट एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय को सौंपने की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायाधीश तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि यह याचिका समय से पहले दायर की गई है, क्योंकि मामले का परीक्षण अभी शुरू ही नहीं हुआ है। अदालत ने टिप्पणी की कि जब कार्यवाही प्रारंभ ही नहीं हुई है, तब निगरानी का प्रश्न ही नहीं उठता।
पीठ ने याचिका की मंशा पर आपत्ति जताते हुए कहा, “परीक्षण अभी शुरू नहीं हुआ और आप चाहते हैं कि अदालत उसके संचालन पर नजर रखे? ऐसी निगरानी तब विचारणीय होती है जब कोई मामला वर्षों तक लंबित हो जाए, न कि शुरुआत से पहले।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन का उल्लेख नहीं कर सके, जिससे जनहित याचिका के आधार पर हस्तक्षेप उचित ठहराया जा सके। इसके बाद याचिका वापस ले ली गई।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अदालत की प्रत्यक्ष भागीदारी पीड़ित परिवारों को भरोसा देगी। उन्होंने दलील दी कि पिछले कई आतंकवादी मामलों में सुनवाई लंबी खिंचती रही है और लाल किला विस्फोट का पुराना मामला भी वर्षों बाद निपट पाया था।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने याचिका को गलत तरीके से दायर बताया। उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच अब दिल्ली पुलिस से हटकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के पास है और ट्रायल गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत आगे बढ़ेगा।
यह याचिका पूर्व विधायक पंकज पुष्कर की ओर से दायर की गई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि लाल किला विस्फोट देश की संप्रभुता के प्रतीक पर हमला था और पीड़ित परिवार अब भी न्याय और “सत्य के अधिकार” से वंचित हैं। याचिका में आग्रह किया गया था कि ट्रायल को छह महीने की समयसीमा में पूरा कराया जाए।