आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को भारत की शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार की दिशा में एक नई पहल की शुरुआत की। उन्होंने ‘दुनिया की शिक्षा व्यवस्था और भारत’ नाम से एक वीडियो सीरीज लॉन्च की है, जिसका उद्देश्य नागरिकों को शिक्षा के महत्व को लेकर जागरूक करना है, ताकि वे अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए सही जनप्रतिनिधियों का चयन कर सकें।
सिसोदिया बोले— देश की तरक्की शिक्षा के बदलाव से ही संभव
श्रृंखला के पहले एपिसोड में सिसोदिया ने जापान, सिंगापुर, चीन, कनाडा और फिनलैंड जैसे देशों के विकास में शिक्षा की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जैसे सिंगापुर ने आजादी के बाद मजबूत शिक्षा व्यवस्था के जरिए खुद को समृद्ध देशों की सूची में शामिल किया, वैसे ही भारत को भी शिक्षा के क्षेत्र में निर्णायक बदलाव की जरूरत है। उनका कहना था कि जब तक शिक्षा नहीं बदलेगी, देश में सार्थक बदलाव संभव नहीं है।
एपिसोड में पांच देशों की पांच कहानियां, एक सवाल— भारत कहां खड़ा है?
सिसोदिया ने बताया कि कुछ समय पहले उनकी और एक एआई टूल के बीच शिक्षा पर चर्चा हुई थी, जिससे लाखों लोग जुड़ गए। लोगों की इस रुचि को देखते हुए यह वीडियो सीरीज बनाई गई। पहले एपिसोड में पांच देशों की शिक्षा प्रणाली का विश्लेषण करते हुए यह सवाल उठाया गया कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की शिक्षा व्यवस्था किस स्थिति में है।
जापान: शिक्षा से राष्ट्रीय चरित्र निर्माण
सिसोदिया ने बताया कि जापान ने 1872 में ही कानून बना दिया था कि बच्चों की शिक्षा सरकार की जिम्मेदारी है। युद्ध के बाद बर्बादी झेलने के बावजूद, जापान ने शिक्षा और तकनीक की बदौलत दोबारा खड़ा होकर वैश्विक नेतृत्व किया। उन्होंने बताया कि जापानी स्कूलों में विद्यार्थी सफाई का कार्य स्वयं करते हैं और देशभक्ति व्यवहार में झलकती है, न कि सिर्फ पाठ्यपुस्तकों में।
सिंगापुर: जीरो संसाधनों से शिक्षा के दम पर विकसित राष्ट्र
सिसोदिया ने बताया कि 1965 में सिंगापुर की हालत भारत के शहरी स्लम जैसी थी, लेकिन वहां के नेताओं ने तय किया कि देश को बच्चों की शिक्षा पर निवेश कर ही आगे बढ़ाया जा सकता है। वहां इंजीनियर हो या सफाईकर्मी, सभी को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा मिलती है।
चीन: मेहनत को प्राथमिकता देने वाली प्रणाली
सिसोदिया ने बताया कि चीन की शिक्षा प्रणाली का फोकस टैलेंट पर नहीं, मेहनत पर है। बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में अंकों के साथ मेहनत की जानकारी भी दी जाती है। अभिभावकों को रोजाना बच्चों के प्रदर्शन की जानकारी दी जाती है और बच्चों को सरकारी नौकरियों की बजाय वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जाता है।
कनाडा: विविधता में एकता, कौशल आधारित शिक्षा
कनाडा की शिक्षा प्रणाली की प्रशंसा करते हुए सिसोदिया ने कहा कि वहां 100 से अधिक भाषाओं में बच्चे पढ़ते हैं और संसद शिक्षा के लक्ष्य तय करती है। पाठ्यक्रम में नेतृत्व, संवाद, रणनीति और समुदाय निर्माण जैसे कौशल शामिल हैं, जो भारत में अभी भी अतिरिक्त गतिविधियों में गिने जाते हैं।
फिनलैंड: सबसे विश्वसनीय शिक्षक प्रणाली
फिनलैंड में स्कूलिंग की शुरुआत 7 साल की उम्र से होती है, और शुरुआती वर्षों में बच्चे खेलकर सीखते हैं। वहां टीचर बनना आईआईटी या आईआईएम से अधिक कठिन है। सरकार शिक्षक प्रशिक्षण पर सबसे अधिक निवेश करती है और इंस्पेक्टर नहीं बल्कि विश्वास आधारित व्यवस्था लागू है।
क्या भारत इन मॉडलों से कुछ सीख सकता है?
सिसोदिया ने सवाल उठाया कि भारत को अपनी जमीनी सच्चाइयों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने होंगे। उन्होंने कहा कि भारत को किसी की नकल नहीं करनी, बल्कि अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप व्यवस्था बनानी है। जब तक शिक्षा में बदलाव नहीं आएगा, तब तक देश भी नहीं बदलेगा। उन्होंने जनता से अपील की कि जिस तरह की शिक्षा वे अपने बच्चों के लिए चाहते हैं, उसी सोच वाले नेताओं को चुनें।