हमीरपुर जिले की भोरंज पंचायत के सम्मू गांव में दिवाली का पर्व सदियों से अनोखे तरीके से मनाया जाता है। यहां के लोग दीप जरूर जलाते हैं, लेकिन किसी भी घर में पकवान बनाने या पटाखे जलाने की परंपरा नहीं है। माना जाता है कि इस नियम का पालन न करने पर गांव में आपदा आ सकती है। दिवाली की रात ग्रामीण घर से बाहर भी नहीं निकलते।
सदियों पुरानी मान्यता
ग्रामीणों के अनुसार, इस परहेज की वजह सदियों पहले हुई एक घटना है। मान्यता है कि गांव की एक महिला अपने पति के साथ सती हो गई थी। वह दिवाली के दिन अपने मायके जा रही थी, तभी उसके पति की मृत्यु हो गई। अत्यंत दुख और सदमे में महिला ने अपने पति के साथ सती हो जाने का निर्णय लिया और जाते-जाते पूरे गांव को यह श्राप दे दिया कि यहां के लोग कभी दिवाली नहीं मना पाएंगे।
सती की मूर्ति की होती है पूजा
आज भी गांव में दिवाली के दिन केवल सती की मूर्ति की पूजा की जाती है। गांव की महिलाओं कमला, सरिता, बीना और संतोष के अनुसार, जब से वे इस गांव में शादी करके आई हैं, तब से कभी भी उन्होंने गांव में दिवाली मनाते नहीं देखा। इस श्राप के चलते लगभग 100 परिवार दिवाली नहीं मनाते। ग्रामीणों का कहना है कि यह परंपरा गांव से बाहर बसने वाले परिवारों पर भी लागू होती है; यहां तक कि किसी ने बाहर जाकर दिवाली मनाने की कोशिश की तो उनके घर में आग लग गई।
गांव के प्रधान पूजा देवी बताती हैं, "हम सिर्फ सती की पूजा करते हैं और उनके आगे दीप जलाते हैं। यही हमारी परंपरा और सुरक्षा का तरीका है।"