भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व स्टार ऑलराउंडर युवराज सिंह ने कहा है कि युवा खिलाड़ी अभिषेक शर्मा के साथ काम करने से उन्हें कोच और मेंटर बनने का वास्तविक अनुभव मिला। युवराज ने स्वीकार किया कि जब वे 19 साल के थे, तब उनके लिए कोई ऐसा नहीं था जो उनकी असुरक्षाओं और चुनौतियों को समझ सके।
युवराज ने पीटीआई से बातचीत में बताया, “जब मैं 19 साल का था, तब चुनौतियां बहुत थीं लेकिन कोई उन्हें समझ नहीं पाया। आज जब मैं अभिषेक जैसे युवा खिलाड़ियों को देखता हूं, तो आसानी से समझ आता है कि वे क्या महसूस कर रहे हैं। कोचिंग का मतलब केवल दिशा-निर्देश देना नहीं, बल्कि उनके मन को समझना भी है।”
युवराज ने बताया कि उनका अभिषेक शर्मा और शुभमन गिल के साथ जुड़ाव तब से है जब वे अपने संन्यास के करीब थे। उन्होंने कहा, “शुरुआत में मैं सिर्फ अनुभव साझा कर रहा था, लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि कोचिंग एक यात्रा है। इस सफर ने मुझे यह सिखाया कि एक खिलाड़ी की प्रतिभा को कैसे तराशा और आगे बढ़ाया जाता है।”
डरमुक्त खेल ही सबसे बड़ी ताकत
युवराज ने कहा कि अभिषेक शर्मा के प्रदर्शन के पीछे कप्तान सूर्यकुमार यादव और कोच गौतम गंभीर का मार्गदर्शन अहम है। “जब कोच और कप्तान खिलाड़ी को बिना डर खेलने की आजादी देते हैं, तभी वह अपना असली प्रदर्शन कर पाता है। डरमुक्त क्रिकेट से ही बड़े परिणाम मिलते हैं।”
उन्होंने अपने 2011 वर्ल्ड कप के अनुभव से तुलना करते हुए कहा, “गैरी कर्स्टन हमेशा कहते थे कि अगर आप अपने अंदाज में खेलेंगे तो टीम को जीत दिला सकते हैं। आज वही आत्मविश्वास अभिषेक में दिखता है।”
युवराज ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिषेक की सफलता महज कुछ महीनों की मेहनत का नतीजा नहीं, बल्कि चार-पांच साल के सतत प्रयास का परिणाम है। “अभिषेक की वर्क एथिक कमाल की है। लोग सिर्फ पिछले छह-नौ महीनों की चर्चा करते हैं, लेकिन यह उसकी चार साल की तैयारी का फल है।”
मेरा तरीका अलग है
अपने पिता योगराज सिंह से तुलना पर युवराज ने कहा कि उनकी कोचिंग शैली पूरी तरह अलग है। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, “मैं अपने पिता जैसा सख्त नहीं हूं। मैं मानता हूं कि जब आप किसी को सिखा रहे होते हैं, तो उनके नजरिए से चीजों को समझना चाहिए। कोचिंग का रिश्ता पुश और पुल जैसा होना चाहिए, थोड़ा देना और थोड़ा लेना।”