दुनिया के कई बड़े देश अंतरराष्ट्रीय शिपिंग के कारण होने वाले उत्सर्जन पर मूल्य लगाने पर सहमत हो गए हैं। शिपिंग यानी समुद्रों में होने वाला बड़े जहाजों का परिवहन विश्व के सबसे बड़े और सर्वाधिक प्रदूषणकारी उद्योगों में एक है। संयुक्त राष्ट्र की शिपिंग वार्ता में शुक्रवार को हुए अहम फैसले के बाद अब पहली बार ऐसा होगा कि सम्पूर्ण वैश्विक क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र के अधीन काम करेगा। यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ – अंतर्राष्ट्रीय मैरिटाइम संगठन) की बैठक में शुक्रवार को लिया गया, जिसमें अमेरिका ने हिस्सा नहीं लिया।
टैक्स का मकसद: शिपिंग को पर्यावरण के अनुकूल बनाना
आईएमओ का यह टैक्स 2028 से लागू होगा और इसका उद्देश्य है कि शिपिंग उद्योग को ज्यादा साफ-सुथरे और हरित ईंधन की ओर ले जाया जाए। समुद्री जहाजों से निकलने वाला प्रदूषण वैश्विक स्तर पर तीन फीसदी कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। जैसे-जैसे जहाज बड़े होते गए और ज्यादा माल ले जाने लगे, वैसे-वैसे उनका ईंधन खर्च और प्रदूषण भी बढ़ा है।
नियमों का पालन नहीं तो टैक्स देना होगा
इस नए नियम के तहत अगर किसी देश ने आईएमओ के नेट जीरो फंड में योगदान नहीं दिया है या उसके जहाज पर्यावरणीय मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं, तो उसे प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड के लिए 100 अमेरिकी डॉलर का टैक्स देना होगा।
क्या है आईएमओ और इसका लक्ष्य?
आईएमओ दुनिया की शिपिंग गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला संगठन है। इसका लक्ष्य है कि 2050 तक शिपिंग उद्योग को नेट-जीरो उत्सर्जन तक पहुंचाया जाए। इसका मतलब है कि जहाजों से जितनी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, उन्हें किसी न किसी तरह से पूरी तरह से संतुलित किया जाए।
समुद्री ईंधन के लिए नए मानक तय
आईएमओ ने इस बैठक में यह भी तय किया कि आने वाले समय में जहाजों में उपयोग होने वाले ईंधन को क्लीनर (कम प्रदूषण फैलाने वाला) बनाया जाएगा। इसके लिए एक ‘ग्लोबल फ्यूल स्टैंडर्ड’ यानी वैश्विक ईंधन मानक तय किया गया है, जो धीरे-धीरे लागू किया जाएगा। इस बैठक के दौरान एक और बड़ा निर्णय लिया गया, जिसके तहत उत्तरी-पूर्व अटलांटिक महासागर को उत्सर्जन नियंत्रण क्षेत्र घोषित किया गया है। इस क्षेत्र से गुजरने वाले जहाजों को कड़े पर्यावरण नियमों का पालन करना होगा और उन्हें साफ ईंधन और इंजन तकनीक अपनानी पड़ेगी।
किन देशों ने क्या रुख अपनाया?
इस बैठक में 60 से ज्यादा देशों ने भाग लिया। प्रशांत द्वीप देशों ने सीधा टैक्स लगाने का समर्थन किया क्योंकि जलवायु परिवर्तन उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। चीन, ब्राजील, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने क्रेडिट ट्रेडिंग मॉडल (यानी टैक्स की जगह व्यापार) का समर्थन किया। आखिरकार, दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ और एक साझा मॉडल अपनाया गया।
अमेरिका बैठक से गायब रहा
इस अहम निर्णय में अमेरिका ने हिस्सा नहीं लिया। ट्रंप प्रशासन ने यह कहकर बैठक का विरोध किया कि यह टैक्स शिपिंग उद्योग पर आर्थिक बोझ डालेगा और इससे मंहगाई बढ़ेगी। अमेरिका ने चेतावनी दी कि अगर उसके जहाजों पर टैक्स लगाया गया तो वो जवाबी कार्रवाई कर सकता है।