एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ढाबों व होटलों पर मालिकान का नाम लिखने का उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश सरकारों के आदेशों पर अन्तरिम रोक लगा दी है। मुस्लिम वोटों के तलबगार नेताओं, कथित सेक्युलर वादियों ने और मोदी-योगी सरकारों के विरुद्ध एजेंडा चलाने वाले पत्रकार, मीडिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मोदी विरोधी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने में जुट गए हैं।

मुस्लिम-मुस्लिम खेलने वालों ने ढाबों पर नाम अंकित करने के आदेश को राजनीतिक रंग दे दिया है। अदालत ने करोड़ों शिवभक्तों की भावना की परवाह किये बिना रोक का अंतरिम आदेश पारित कर दिया और मुद्दे को मांसाहारी-शाकाहारी भोजन से जोड़ दिया। क्या कोर्ट को मालूम नहीं कि श्रावण मास में करोड़ों हिन्दू जो कांवड़ लेने नहीं जाते, वे भी अपने घरों में प्याज-लहसन का प्रयोग नहीं करते? बहु संख्यक हिन्दुओं की धार्मिक आस्था को कानून के हथौड़े से कुचल कर जबरन एक अच्छे निर्णय को टालना गलत सन्देश देने वाला है। कथित सेक्युलर वादी खेल में न्यायपालिका को पार्टी नहीं बनना चाहिए। पाकिस्तान और बंगलादेश में न्यायपालिका के हस्तक्षेप से कोहराम मचा है। भारत को बख्शा जाना चाहिए।

गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'