इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यालय की ओर से जारी बयान में बताया गया कि इस्राइल की सुरक्षा परिषद ने गाजा पर कब्जे की मंजूरी दे दी है। शुक्रवार को लिए गए इस निर्णय के बाद, 22 महीने से जारी गाजा संघर्ष के और तेज होने की आशंका है। गुरुवार को नेतन्याहू ने स्पष्ट किया था कि हमास को समाप्त करने के लिए इस्राइल गाजा पट्टी पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना चाहता है। उन्होंने यह भी कहा कि कब्जे के बाद गाजा का प्रशासन सहयोगी अरब देशों को सौंप दिया जाएगा।
देश में ही उठने लगे विरोध के स्वर
गाजा में सैन्य अभियान को और तेज करने से वहां रह रहे लाखों फिलीस्तीनी नागरिकों के साथ-साथ इस्राइल के कब्जे में मौजूद 20 बंधकों की जान को गंभीर खतरा बताया जा रहा है। वर्तमान में गाजा के लगभग तीन-चौथाई हिस्से पर इस्राइल का नियंत्रण है। इसके बावजूद सरकार के इस फैसले का इस्राइल में ही विरोध शुरू हो गया है। बंधकों के परिजनों को आशंका है कि बढ़ते संघर्ष से वे अपने प्रियजनों को हमेशा के लिए खो सकते हैं। शुक्रवार को यरूशलम में हुई सुरक्षा परिषद की बैठक के बाहर प्रदर्शनकारियों ने विरोध जताया। कई पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने भी चेतावनी दी कि यह कदम सीमित सैन्य लाभ देगा, लेकिन इस्राइल को लंबे समय तक युद्ध में उलझा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने का खतरा
हालिया इंटरव्यू में नेतन्याहू ने कहा था कि गाजा से हमास को पूरी तरह हटाकर वहां के लोगों को स्वतंत्र जीवन दिया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि इस्राइल स्थायी रूप से गाजा पर नियंत्रण नहीं रखना चाहता और इसे अरब सहयोगियों को सौंपना चाहता है, ताकि वे वहां प्रशासन संभाल सकें और क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे। वहीं, इस्राइली सेना के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल इयाल जामिर ने भी इस योजना का विरोध करते हुए कहा कि इससे बंधकों का जीवन संकट में पड़ सकता है। गाजा में जारी अभियान को लेकर इस्राइल पहले ही अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना कर रहा है, और यदि वहां पूर्ण कब्जा स्थापित किया गया तो इसके वैश्विक स्तर पर और अधिक अलग-थलग पड़ने की संभावना है।