सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को डीएमके के सदस्यता अभियान ‘ओरानियिल तमिलनाडु’ के तहत ओटीपी आधारित सत्यापन प्रणाली के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की पीठ ने डीएमके की विशेष अनुमति याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि मामला संवेदनशील है और पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में है।
‘हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे’: सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि अदालत का दायित्व नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा, “आप हाईकोर्ट जाएं। हम इस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहते।”
डीएमके की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने दलील दी कि पार्टी द्वारा आधार संबंधी किसी भी जानकारी का संग्रह नहीं किया जा रहा है और हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप किया जाना चाहिए, क्योंकि याचिका में रोक की मांग ही नहीं की गई थी।
DMK की दलील: कार्यक्रम रुक गया, कोई अवैध डेटा संग्रह नहीं
अधिवक्ता विल्सन ने कहा, “हमारा अभियान पूरी तरह रुक गया है। अब तक 1.7 करोड़ लोगों ने सदस्यता ली है और अपने सुझाव दिए हैं। हम वही प्रक्रिया अपना रहे हैं जो भाजपा और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां कर रही हैं। आधार की कोई जानकारी नहीं ली जा रही है।”
हाईकोर्ट ने ओटीपी सत्यापन पर लगाई थी रोक
इससे पहले 21 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट ने डीएमके को अपने अभियान में ओटीपी आधारित सत्यापन संदेशों के उपयोग पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी थी। अदालत ने यह निर्णय डेटा सुरक्षा और नागरिकों की निजता से जुड़ी चिंताओं के आधार पर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि जब व्यक्तिगत जानकारी एकत्र की जा रही हो, तो यह मामला सार्वजनिक हित और निजता के अधिकार से जुड़ी गंभीर चिंता का विषय बन जाता है।
शिवगंगा निवासी की याचिका पर हुआ था आदेश
यह आदेश शिवगंगा जिले के टी अथिकरई गांव के निवासी एस. राजकुमार द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि डीएमके कार्यकर्ता ‘ओरानियिल तमिलनाडु’ अभियान की आड़ में आम नागरिकों से व्यक्तिगत विवरण और आधार संबंधी जानकारी जुटा रहे हैं, जो कि निजता का उल्लंघन है।