नई दिल्ली। वर्ष 2006 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाके से जुड़े बहुचर्चित मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असमर्थ रहा और आरोपियों के विरुद्ध कोई ठोस साक्ष्य नहीं पाए गए।
विशेष न्यायाधीश अभय लहोटी ने आदेश पढ़ते हुए कहा, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं करता।” इस फैसले के साथ 17 साल पुराने इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का एक लंबा अध्याय समाप्त हुआ।
कांग्रेस और विपक्ष ने फैसले पर उठाए सवाल
फैसले के बाद कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमें पहले से अंदेशा था कि ऐसा ही होने वाला है। गृह मंत्री के संसद में दिए गए बयान के बाद यह लगभग तय था।”
उन्होंने यह भी कहा कि जब आतंकवाद को मुसलमानों से जोड़ा जाता है तो कभी-कभी उसे ‘हिंदू आतंकवाद’ कहना भी मजबूरी बन जाती है। चौधरी ने आरोप लगाया कि हर धर्म में कट्टरपंथी तत्व हो सकते हैं, उन्हें धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने फैसले पर असंतोष जताते हुए कहा, “यह न्याय नहीं, केवल एक निर्णय है। भाजपा ने जिस आर.के. सिंह के शब्द ‘हिंदू आतंकवाद’ को गढ़ा, बाद में उन्हें पार्टी में शामिल कर मंत्री बनाया गया।”
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाया कि अगर सभी आरोपी बरी हो गए तो फिर बम धमाकों का ज़िम्मेदार कौन है? उन्होंने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे?
भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर बोला हमला
पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कांग्रेस द्वारा देश पर थोपे गए ‘हिंदू आतंकवाद’ के झूठे नैरेटिव को न्यायालय ने ध्वस्त कर दिया है।” उन्होंने दावा किया कि यह सब कांग्रेस की वोट बैंक राजनीति का हिस्सा था।
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा कि उन्होंने साध्वी प्रज्ञा से नासिक जेल में मुलाकात की थी, जहां उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं। उन्होंने पूछा कि जिन नेताओं ने ‘भगवा आतंक’ शब्द गढ़ा, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी?
मामला और पृष्ठभूमि
29 सितंबर 2006 को मालेगांव में हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हुई थी और दर्जनों घायल हुए थे। इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सहित सात लोगों को आरोपी बनाया गया था।
अब जबकि अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी को दोषमुक्त करार दिया है, यह मामला राजनीतिक और सामाजिक विमर्श के केंद्र में फिर से आ गया है।