सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा सीटों के पुनर्सीमन की मांग को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 170(3) के तहत अगले परिसीमन की प्रक्रिया 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही की जा सकती है।
संविधान के प्रावधानों का हवाला
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की धारा 26, परिसीमन के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 170 के अधीन है। इस अनुच्छेद के अनुसार, वर्तमान में कोई परिसीमन नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी माना कि याचिका पर विचार करना संविधानिक बाधाओं के कारण संभव नहीं, क्योंकि इससे देश के अन्य राज्यों में भी इसी तरह की याचिकाओं का मार्ग खुल सकता है।
जम्मू-कश्मीर से तुलना को कोर्ट ने नकारा
पीठ ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन किया गया जबकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इससे वंचित रह गए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों की संवैधानिक स्थिति अलग-अलग होती है। अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है और वह संविधान के भाग 7 के अध्याय 3 के अंतर्गत नहीं आता, इसलिए उस पर संसद द्वारा बनाए गए विशेष कानून लागू होते हैं।
याचिका में क्या थी मांग
प्रोफेसर के. पुरुषोत्तम रेड्डी द्वारा दाखिल याचिका में केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की धारा 26 को लागू करे और राज्य में विधानसभा व लोकसभा सीटों का पुनर्सीमन कराए। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि यदि जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन संभव है तो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को इससे बाहर रखना अनुचित और असंवैधानिक वर्गीकरण होगा।