दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला पढ़ी-लिखी है और अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम है तो उसे अंतरिम गुजाराभत्ता की मांग नहीं करनी चाहिए। बल्कि खुद कमाने के रास्ते खोजने चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महिला की याचिका पर सुनवाई करने के दौरान यह भी कहा कि कानून निष्क्रियता को बढ़ावा नहीं देता।

जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण का आदेश दिए जाने के प्रावधान के पीछे असल मकसद पति-पत्नी के बीच समानता बनाए रखने संबंधित लोगों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यदि कोई महिला सक्षम है तो भी वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।

कोर्ट ने कहा, इस मामले में अंतरिम भरण-पोषण को हतोत्साहित किया जा रहा क्योंकि अदालत याचिकाकर्ता में कमाने और अपनी शिक्षा का लाभ उठाने की क्षमता देख सकती है। महिला ने अपनी याचिका में दावा किया था कि निचली अदालत ने भरण-पोषण के लिए उसकी याचिका खारिज करके गलती की है, क्योंकि वह बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई ठोस साधन नहीं है।

योग्यता के बावजूद काम न करने पर उठाया सवाल
सुनवाई के दौरान उसके पति की तरफ से याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि यह कानून का दुरुपयोग है, क्योंकि महिला उच्च शिक्षित है और कमाने में सक्षम है। वह महिला केवल बेरोजगारी के आधार पर भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती। महिला को राहत देने से इन्कार करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह यह समझने में असमर्थ है कि सक्षम और अच्छी योग्यता होने के बावजूद उसने भारत लौटने के बाद से निष्क्रिय बैठे रहना क्यों चुना। महिला के पास ऑस्ट्रेलिया से मास्टर डिग्री है और वह अपनी शादी से पहले दुबई में अच्छी कमाई कर रही थी।

ट्रायल कोर्ट ठुकरा चुकी है मांग
उक्त मामले में दंपति की शादी दिसंबर 2019 में हुई और वे सिंगापुर चले गए। महिला का आरोप है कि पति और उसके परिवार के दुर्व्यवहार से तंग आकर फरवरी 2021 में वह भारत लौट आई। आर्थिक तंगी के कारण उसे अपने गहने तक बेचने पड़े। जून 2021 में उसने अपने पति से गुजाराभत्ता दिलाने की मांग करते हुए याचिका दायर की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद वह हाईकोर्ट पहुंची।