केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ सोमवार को ट्रेड यूनियनों ने प्रदर्शन किया। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और राष्ट्रीय फेडरेशनों के आह्वान पर सीटू, इंटक, एटक, केंद्रीय कर्मचारियों की संयुक्त समन्वय समिति, बीमा, बैंक, बीएसएनएल, डाक कर्मियों, एजी ऑफिस सहित विभिन्न कार्य क्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों व केंद्रीय कर्मचारियों ने सोमवार को हड़ताल की। हड़ताल को हिमाचल किसान सभा, जनवादी महिला समिति, दलित शोषण मुक्ति मंच, डीवाईएफआई व एसएफआई ने भी समर्थन दिया। सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील व्यवस्था प्रभावित रही। बैंकों में भी कामकाज प्रभावित हुआ। मंगलवार को भी ट्रेड यूनियनों की हड़ताल जारी रहेगी। शिमला, चंबा, तीसा, चुवाड़ी, धर्मशाला, हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर, मंडी, सरकाघाट, जोगिंद्रनगर, बालीचौकी, कुल्लू, आनी, सैंज, सोलन, दाड़लाघाट, नालागढ़, बद्दी, बरोटीवाला, परवाणू, नाहन, शिलाई, ठियोग, रामपुर, रोहड़ू, कुमारसैन, निरमंड व टापरी में मजदूरों ने प्रदर्शन किया।

सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ. कश्मीर ठाकुर, प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, महासचिव प्रेम गौतम, इंटक प्रदेशाध्यक्ष हरदीप सिंह बावा, महासचिव सीताराम सैनी, एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश भारद्वाज, महासचिव देवकी नंदन, एनजेडआईईए प्रदेशाध्यक्ष सुभाष भट्ट, महासचिव प्रदीप मिन्हास, एचपीएमआरए प्रदेशाध्यक्ष हुक्म चंद शर्मा व महासचिव सेठ चंद शर्मा की अगुवाई में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन किए गए। मजदूर यूनियनों के नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार पूंजीपतियों व औद्योगिक घरानों के हित में कार्य कर रही है। पिछले सौ सालों में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कोरोना काल का फायदा उठाते हुए केंद्र सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों और किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों और कारपोरेट्स के लिए अवसर में तबदील कर दिया।

ट्रेड यूनियनों की ये हैं मांगें
मजदूरों के कानूनों को खत्म कर चार लेबर कोड बनाए जाएं। सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण पर रोक लगाई जाए। ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल की जाए। आउटसोर्स नीति बनाई जाए। स्कीम वर्करों को नियमित सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा मजदूरों को दो सौ दिन का रोजगार और साढ़े तीन सौ रुपये दिहाड़ी की जाए। करुणामूलक रोजगार दिया जाए। छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर कर इसका लाभ कर्मचारियों को जल्द दिया जाए। मजदूरों का न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपये घोषित किया जाए। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस व खाद्य वस्तुओं की भारी महंगाई पर रोक लगाने के लिए कदम उठाए जाएं। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी संशोधनों को वापस लिया जाए।