एएमयू पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जमीयत ने किया स्वागत, जानें क्या बोले मदनी

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जमीयत उलमा-ए-हिंद ने स्वागत किया है. जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इससे अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली का रास्ता आसान हुआ है. ये महत्वपूर्ण और दूरगामी फैसला है. इस फैसले ने मौजूदा सरकार को भी आईना दिखाया है, जो अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली में रुकावट बनी हुई थी. जमीयत उलमा-ए-हिंद ने हमेशा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के शैक्षिक और संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया है.

मौलाना मदनी ने कहा कि संघर्ष का एक उदाहरण हाल ही में मदरसों के खिलाफ सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जारी नकारात्मक अभियान को रोकने का प्रयास है. इसी तरह अजीज बाशा मामले में जब 1967 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, तो जमीयत उलमा-ए-हिंद ने फिदा-ए-मिल्लत मौलाना सैयद असद मदनी के नेतृत्व में 14 साल तक इसके खिलाफ संसद के अंदर और बाहर लंबी लड़ाई लड़ी थी.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए ऑल इंडिया कन्वेंशन

उन्होंने कहा, जमीयत उलमा-ए-हिंद के तत्वावधान में 29 अगस्त 1981 को ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए ऑल इंडिया कन्वेंशन’ आयोजित किया गया था. इसमें देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. इसमें जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भारत सरकार से जोरदार ढंग से मांग की कि मुस्लिम विश्वविद्यालय के संशोधन विधेयक को संसद सत्र में पारित कर अल्पसंख्यक चरित्र को बहाल किया जाए.

जमीयत उलमा-ए-हिंद के इस लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप संसद ने 1981 में अधिनियम पारित किया. हालांकि, नौकरशाही की सांप्रदायिक मानसिकता की वजह से इस अधिनियम में कुछ खामियां छोड़ दी गईं. इससे हस्तक्षेप का रास्ता खुला रह गया और इसके नतीजे में 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बार फिर अल्पसंख्यक दर्जे को खत्म कर दिया.

तत्कालीन सरकार ने हलफनामे पेश किया था

उन्होंने कहा कि 2006 में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस फैसले के संदर्भ में मनमोहन सिंह से मुलाकात की. हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की सलाह दी, जिस पर तत्कालीन सरकार ने एक्शन लिया और भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष हलफनामे द्वारा पेश किया. मगर, 2014 के बाद एनडीए सरकार ने पिछले रुख से हटते हुए अल्पसंख्यक दर्जा खत्म करने के पक्ष में कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया.

सरकार के इस रवैये के खिलाफ बीते दस साल से जमीयत उलमा-ए-हिंद ने हर संभव संघर्ष किया है. मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद का लंबे समय से मानना है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जो भारत के मुसलमानों की एक अनमोल धरोहर है, सुरक्षित रहे और उन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए सफलतापूर्वक अपनी मंजिलें तय करती रहे, जिसके लिए इसकी स्थापना की गई थी.

उन्होंने कहा कि आज मुसलमान शैक्षिक रूप से बेहद पिछड़ा है और विभिन्न रिपोर्टों ने इसकी पुष्टि की है. मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए स्थापित संस्थानों के चरित्र को बदलना वास्तव में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ शत्रुता और उन्हें और पिछड़ेपन की ओर धकेलने का प्रयास है. मदनी ने अल्पसंख्यकों से अपील की कि वो शिक्षा पर ध्यान दें और उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश और समाज के विकास में अपनी भूमिका निभाएं.

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