मुंबई: उद्योगपति अनिल अंबानी और कैनरा बैंक के बीच चल रही कानूनी लड़ाई में एक अहम मोड़ तब आया जब बैंक ने बॉम्बे हाई कोर्ट में बताया कि उसने रिलायंस कम्युनिकेशंस और उसकी सहयोगी इकाई के लोन खातों को ‘फ्रॉड’ घोषित करने का अपना पूर्व निर्णय रद्द कर दिया है।
पहले, कैनरा बैंक ने रिलायंस कम्युनिकेशंस पर आरोप लगाया था कि कंपनी ने 1,050 करोड़ रुपये के लोन का दुरुपयोग किया, जो पूंजीगत व्यय और पुराने कर्ज चुकाने के उद्देश्य से स्वीकृत किया गया था। बैंक के मुताबिक, नियमों का उल्लंघन करते हुए मार्च 2017 में यह खाता एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) की श्रेणी में चला गया था।
फ्रॉड टैग के फैसले पर पलटवार
5 नवंबर 2024 को बैंक द्वारा भेजे गए एक पत्र में स्पष्ट किया गया था कि कंपनी ने डिफॉल्ट किया है और लोन की शर्तों का उल्लंघन किया है। इसके चलते बैंक ने उसे फ्रॉड की श्रेणी में डाल दिया था। लेकिन अब बैंक ने कोर्ट में बताया कि उसने यह निर्णय वापस ले लिया है।
हालांकि, बैंक ने यह नहीं बताया कि यह बदलाव किस आधार पर किया गया है। सूत्रों की मानें तो इसके पीछे कानूनी रणनीति, नए साक्ष्य या फिर आपसी समझौता संभावित कारण हो सकते हैं।
रिलायंस कम्युनिकेशंस के लिए राहत भरा कदम
बीते कुछ वर्षों में गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रही रिलायंस कम्युनिकेशंस पहले से ही दिवालियापन की प्रक्रिया से गुजर रही है। ऐसे में ‘फ्रॉड’ का टैग हटना अनिल अंबानी के लिए कानूनी और व्यावसायिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण राहत मानी जा रही है।
अब भी उठ रहे हैं सवाल
हालांकि यह घटनाक्रम अनिल अंबानी के पक्ष में जाता है, लेकिन इससे कुछ अहम सवाल भी खड़े होते हैं:
- क्या बैंक ने किसी दबाव में यह फैसला लिया?
- क्या कोई गुप्त समझौता हुआ है?
- क्या नई जांच में पुराने आरोप खारिज हो गए हैं?
इन सवालों के जवाब अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन आने वाले समय में इस पर और स्पष्टता आने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि रिलायंस ग्रुप की कई अन्य कंपनियां भी वित्तीय विवादों में उलझी रही हैं। ऐसे में कैनरा बैंक का यह रुख न सिर्फ कानूनी पटल पर, बल्कि उद्योग जगत में भी चर्चा का विषय बन गया है।