पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर बंगालियों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए तीखा हमला बोला है। बुधवार को कोलकाता के डोरीना क्रॉसिंग पर तृणमूल कांग्रेस के मंच से उन्होंने केंद्र की नीतियों की आलोचना की, वहीं गुरुवार को न्यू टाउन में एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दोहराया कि बांग्ला बोलने वालों के साथ देश में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि बांग्ला भाषा का प्रयोग करने वालों को ‘निर्वासित’ किए जाने की धमकी दी जा रही है। उन्होंने कहा, “वे एक सर्कुलर जारी कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि यदि कोई बांग्ला बोलता है तो उसे देश से निकाल दिया जाए। क्या वे जानते हैं कि बांग्ला एशिया की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली और विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी भाषा है?”
‘बांग्ला बोलने वालों को बताया जा रहा बांग्लादेशी और रोहिंग्या’
ममता ने यह भी कहा कि विभिन्न राज्यों में बांग्ला बोलने वालों को ‘बांग्लादेशी’ या ‘रोहिंग्या’ कहकर गलत ठहराया जा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि म्यांमार के रोहिंग्या को बांग्ला बोलने का ज्ञान कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा, “अगर कोई कहता है कि देश में 17 लाख रोहिंग्या हैं, तो मुझे बताएं कि वे हैं कहां?”
मुख्यमंत्री ने 1971 के इंदिरा गांधी–मुजीबुर रहमान समझौते की याद दिलाते हुए कहा कि उस समय जो लोग भारत आए थे, वे भारतीय नागरिक हैं। उन्होंने कहा कि बंगाल के हर जिले में बोली जाने वाली बांग्ला की अपनी विशेषता है और उसे बांग्लादेशी कहकर नकारा नहीं जा सकता।
केंद्र पर लगाया मनरेगा फंड रोकने का आरोप
कार्यक्रम के दौरान ममता बनर्जी ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल को मनरेगा, ग्रामीण आवास योजना और सड़क निर्माण जैसी परियोजनाओं के लिए मिलने वाले फंड से वंचित किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से ‘बांग्ला बाड़ी’ योजना के अंतर्गत 12 लाख घरों का निर्माण कराया है और दिसंबर तक 16 लाख और लाभार्थियों को सहायता राशि दी जाएगी।
‘हर नागरिक को अधिकार है, भाषा के आधार पर भेदभाव न करें’
ममता बनर्जी ने कहा कि भारत का हर नागरिक देश में कहीं भी जाकर रह सकता है, काम कर सकता है और अपनी भाषा बोल सकता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई बंगाल में रहता है और वोटर है, तो उसका नाम किसी भी सूरत में मतदाता सूची से नहीं हटाया जाना चाहिए।
‘राजनीति करनी है तो सोच बदलो’
मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि एक सच्चे जनप्रतिनिधि के लिए खुले विचार और स्पष्ट दृष्टिकोण जरूरी हैं। उन्होंने कहा, “अगर राजनीति करनी है तो सोच को बदलना होगा। शासन चलाने के लिए सिर्फ पद नहीं, सोच का विस्तार होना चाहिए।”