उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को सभी राजनीतिक दलों से लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान करते हुए रचनात्मक राजनीति को बढ़ावा देने की अपील की। उन्होंने कहा कि देश के विकास और सभ्यतागत निरंतरता के लिए यह आवश्यक है कि सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर लोकतांत्रिक संस्कृति को सशक्त बनाएं।
धनखड़ ने कहा, “मैं सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों से आग्रह करता हूं कि वे सकारात्मक राजनीति में भाग लें। लोकतंत्र की प्रकृति ही ऐसी है कि कोई भी दल हमेशा सत्ता में नहीं रहता। हमारी प्राचीन परंपराओं और विकास की निरंतरता तभी संभव है जब सभी लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करें।”
भाषा को विभाजन नहीं, एकता का माध्यम मानें: धनखड़
भाषा विवाद पर टिप्पणी करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत भाषाई दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राष्ट्र है। उन्होंने कहा, “संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, हिंदी, मराठी जैसी शास्त्रीय भाषाएं हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं। ये भाषाएं न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रतिष्ठित हैं। ऐसे में भाषा के नाम पर विभाजनकारी सोच उचित नहीं है। भाषा को जोड़ने का माध्यम होना चाहिए, न कि टकराव का।”
संवाद और विमर्श की परंपरा को पुनर्जीवित करने की जरूरत
धनखड़ ने देश के लोकतांत्रिक इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत ने सदियों से संवाद, बहस और विचार-विमर्श की परंपरा को संजोया है। उन्होंने अफसोस जताया कि आज यह परंपरा संसद में कम होती जा रही है।
उपराष्ट्रपति ने आगामी संसद सत्र को बेहद अहम बताते हुए कहा, “यह सत्र देश के भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण होगा। मैं आशा करता हूं कि इसमें सार्थक चर्चा होगी और गंभीर विचार-विमर्श के जरिए भारत नई ऊंचाइयों की ओर अग्रसर होगा।”