केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'पंथनिरपेक्षता' जैसे शब्दों को हटाने की कोई मंशा या योजना नहीं है। सरकार ने यह भी कहा कि इस दिशा में कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।

यह जानकारी केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से दी। उन्होंने बताया कि सरकार का रुख स्पष्ट है कि इन शब्दों को हटाने को लेकर न तो विचार किया जा रहा है और न ही ऐसी किसी कार्यवाही की शुरुआत की गई है। मंत्री ने यह भी जोड़ा कि प्रस्तावना से संबंधित किसी भी प्रकार के संशोधन के लिए व्यापक चर्चा और सर्वसम्मति आवश्यक होगी।

सुप्रीम कोर्ट दे चुका है संशोधन को वैधता

मेघवाल ने बताया कि वर्ष 1976 में हुए 42वें संविधान संशोधन के तहत प्रस्तावना में 'समाजवाद' और 'पंथनिरपेक्षता' शब्द जोड़े गए थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने वैध करार दिया है। नवंबर 2024 में 'डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ' मामले में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि संसद के पास संविधान की प्रस्तावना में भी संशोधन करने का अधिकार है।

न्यायालय ने यह भी कहा था कि भारत में 'समाजवाद' का अर्थ कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से है, जो निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं बनता। वहीं 'पंथनिरपेक्षता' संविधान की मूल संरचना का अभिन्न हिस्सा है।

जनचर्चा से नहीं बदलती सरकार की नीति

कानून मंत्री ने यह भी कहा कि भले ही कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी इन शब्दों को हटाने की मांग कर रहे हों, लेकिन इससे सरकार की आधिकारिक नीति में कोई बदलाव नहीं आता। ऐसी गतिविधियां जनचर्चा का विषय हो सकती हैं, लेकिन इन्हें सरकार की स्थिति नहीं माना जा सकता।